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मैं तुम्हारी यादों को
अपनी सुबह की कॉफ़ी में
खूब देर तलक़ फेटता हूँ
अपने सिगरेट के डिब्बे के
आखिर सिगरेट के
आखिरी कश तक तुम्हें खीचता हूँ
अखबार के पहले पन्ने से
आखिरी पन्ने के हर्फ़ों के बीच
अपनी सुबहों में तुम्हें सींचता हूँ
आईने में देखूँ जब भी तो
कोई और भी नज़र आता है
तुम्हारे ख़्वाबों से आँखें मैं मींचता हूँ
यकीन करो
रोज़
मैं
कॉफी में
सिगरेट में
तुमको ही पीता हूँ
अख़बार में तुमको ही पढ़ता हूँ
सुबहों में तुम में ही जगता हूँ
आईने में तुमको ही मिलता हूँ
तुम
मेरी तलब हो
जो छोड़े नहीं छूटती है
रोके नहीं रुकती है
तोड़े नहीं टूटती है
जितना ही दूर करूँ खुद को तुमसे
उतनी ही पास चली आती हो
सुबहों-शाम और दिन-रात
साँस बनके मुझ में बस जाती हो
#सलिल सरोज
परिचय
नई दिल्ली
शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरीकॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)।
प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव।सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।
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