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हर साल दशहरा मनता है, हर बार रावण यूं ही जलता है,,
पूतलों में मरता हर तरफ, मन का रावण मगर कहां दिखता है,,
रावण सूचक है बुराई का, हर बार बताया जाता है,,
अब हर नर के भीतर रावण, ये राज़ छुपाया जाता है,,
कितने दुख तकलीफ सहन की, कितने त्याग किए,,
तब जाकर राम जी श्री राम हुए,,
उनके जीवन पथ का एक प्रतिशत भी अगर हम हो जाते है,
सही मायनों में दशहरा तब हम मनाते है,,,
#सचिन राणा ” हिरो “
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