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जज़्बातों को छेडो़ मत, ज़ख्मों को कुरेदो मत
जिन्दगी ये कुछ नहीं, टूटे हुए ख्वाब है
मौन रह सब सहा, पग-पग दर्द रहा
काँटों-सा ही चुभते ही, यहाँ पे गुलाब हैं
नित नये दिखे रुख, समझ ना आये कुछ
जिन्दगी न देती कभी, प्रश्नों का जवाब है
अंधेरों से आ के तंग, उजालों को चाहो जब
छिप जाता बादलों की, ओट आफताब है
डॉ. पवन कुमारनिजामाबाद
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