आज यूं ही बैठे -बैठे जैसे अतीत की यादों में खो गई थी “कुमोद”

0 0
Read Time3 Minute, 3 Second
bharti vikas preeti
 
बस मोबाइल में टक-टकी लगाए इस डिजिटल की दुनियां में पोते-पोतियों का चेहरा तो दिख जाता है,लेकिन गले लगाने को तो तरस गई हूं।
“खुद ही खुद बड़-बड़ा रही थी”
 
वह भी क्या दिन थे जब दोनों बेटों की किटर-किटर,एक दूसरे की चुगली,एक दुसरे को फिर बचाना, उनकी शैतानियां ,मानो घर भी जीवित सा लगता था।
एक बेटा कम से कम साथ रहेगा सोच तो यही था।
“लेकिन अच्छे भविष्य की लालसा कहां जाए”
जब बड़े बेटे की नौकरी लगी “बैंगलोर”, मानो हमारी खुशी का ठिकाना न था।सबको गर्व से कह रहे थे बैंगलोर जा रहा है।
लेकिन साथ मे ये भी जानते थे कि बस अब हमारी ज़िंदगी इसके साथ यहीं तक थी।
अब इसे उड़ना है,हांलनकी उसकी तरक्की भी चाहते थे।
और जानते भी थे ,ऊचाइयों को छूते-छूते समय की कमी उसे घर आने से रोकेगी,और धीरे-धीरे उसका आशियाना वहीं बन जाएगा।
“और ये घर सिर्फ घूमने की एक जगह जहाँ 1-2 साल में एक बार चक्कर लगाने आएगा”
पहले त्यौहार आते थे तो मायने थे,बच्चों का जोश देख,  उनकी ख्वाइशें पूरी करें, उनकी बनी लिस्ट मुझे बहुत प्रिय थी।
उनकी डिमांड पूरी करवाने को अपने पति से गुस्सा होती थी।
उन्हें भी कहती थी डिमांड पूरी कर लीजिए कुछ ही सालों की बात है।
क्योंकि ये वक़्त है ,नहीं ठहरता।
और इस उम्र में याने की आज मैं इस बीते वक़्त को याद कर खुश हूं।
क्योंकि मैंने कुछ ऐसा बीते वक़्त में नहीं छोड़ा की मुझे लगे कि काश ये भी करती।।
 
“हाँ बस चाहती थी वक़्त रुक जाए”
आज छोटा भी चला गया,अब पता नहीं कब आएगा।
 
यकायक कुमोद के आँसू आखों से गिर पड़े।
कानों में आवाज़ आ रही थी जैसे रंजीत उसके पति ने उसे नींद से जगा दिया।
कब से आवाज़ दे रहा हूँ।रंजीत ने कहा।
“बूढ़ी हो गई हो सुनाई नही देता”
 
“हाँ-हाँ सुन रही हूँ।एक मीठी नोक-झोंक के स्वर से कुमोद बोली”
 
चलिए शाम की सैर का समय हो गया न,मैं जानती हूं।
और मीठी यादों को वहीं बन्द कर ,एक नई याद बनाते हुए,
रंजीत और कुमोद अपनी ही दुनिया मे फिर रम गए।
“मन बांवरा है,जितना मिले और पाने की लालसा में जीता है”।
लेकिन वक़्त तो वक़्त है,न किसी के लिए है थमा, न है रुका।
बस अच्छी बुरी यादों ने इसे है सबने याद रखा।
 
भारती विकास(प्रीति)

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

रंगरेज

Thu Oct 11 , 2018
सुना है बड़े रंगरेज़ हो तुम कुछ भर उदासी तुम्हारी चौकठ पर रख आये हैं भर दो ना रंग इनमें। चढ़ा दो ना रंग अपने होठों की सुर्खियों का सफ़ेद !झक सफ़ेद पड़े चेहरे पर। आओ! आओ ना चुपके चुपके दबे पाँव भर लो अंक में मेरे शब्दों को मै […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।