हे स्त्री वह भी तुम्ही हो
जब धरातल पर मैं आया
सर्वप्रथम तुम्ही ने वात्सल्य
प्रेम से मुझको सहलाया
हां वह भी तुम्ही हो
बड़ा होते ही जिसका स्नेह मिला
तुम से लड़कर भी डरता
और जिसे मैंने दीदी कहा
है इसमें भी को शक नही
कि स्त्री ने मुझे मजबूत बनाया
सलाह से दादी के मुझको
गया था काजल बुकवा लगाया
हे स्त्री वह भी तुम्ही हो
जो मुझे मारकर पढ़ाती थी
मेरी कमियों को छुपा अक्सर
खूबी को ही बताती थी
हे स्त्री तेरा सम्बन्ध सलोना
बुआजी कहलाती थी।।
जरा और बड़ा होने पर
इक परी बन तुम आई
अधिक कहीं तुम मुझसे
परिवार को थी भाई
होने लगी थी अब मुझे
तुमसे छुटकी बहुत जलन
क्योंकि सबकी प्यारी अब तुम
गई थी घर मे बन
हे स्त्री सम्बन्ध है एक और अनमोल
जिसे हम मित्र कहते हैं
होवे जो कुछ मन में अपने
आगे उसके विचार रखते हैं
है पवित्र सबसे सम्बन्ध यह
इस मायावी जग में
प्रेम सहयोग की भावना होती
मित्र के प्रिये रग – रग में
हे स्त्री वह भी तुम्ही हो
जब जीवन लेता मोड़ नया
जब जीवन साथी बन तुम आती हो
इस लालची संसार में भी
अर्धांगिनी कहलाती हो
हे स्त्री प्रिये पावन
रूप तेरे अनेक सुहावन
चाची ताई मामी मौसी भी हैं रूप तेरे
हे स्त्री तुमने
बनकर के नानी
सुनाई थी जो मुझे कहानी
है वह आज भी याद मेरे
हे स्त्री बारम्बार तुम्हे
तीरथ करे प्रणाम है
दुर्गा काली चण्डिका
भी तुम्हारा नाम है।।
#आशुतोष मिश्र तीरथ
जनपद गोण्डा