टूट गया आखिर,
दिन के दरिया पे बना
शाम का बाँध,
रात का सैलाब बह निकला..
और ख्वाबों के सितारों का शहर
डूब गया जहाँ,
रहते थे कई मासूम जज़्बात।
चाँद की कश्ती,
अब तैर रही है..
जो निकली है ढूँढने,
बच गए हों जो कोई..
ज़िन्दा जज़्बात।
सुबह के साहिल पे,
छोड़ देगी कश्ती..
जहाँ खड़ा होगा,
इक सूरज जहाज
ले जाएगा फिर वही,
आगे सफर में..
वक्त-ए-दरिया पे,
बहाकर के साथ।
गर बचा रह गया हो,
कोई जज़्बात..
टूट गया आखिर,
शाम का बाँध….।
#अंकुर नाविक
परिचय: मध्यप्रदेश में महू(जिला इंदौर) निवासी अंकुर नाविक का जन्म १९९३में हुआ है। आपकी प्रकाशित पुस्तकें-‘दीपिका-एक प्रेम कहानी'(उपन्यास),रुबरु-युवा दिलों की थाह लेते अफ़साने(कहानी संग्रह है तो, प्रमुख ऑनलाइन-ऑफलाइन पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।