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आसमाँ इतना भी ना बरस , सड़क पर
किसी गरीब का परिवार अभी सोया है।
सुबह एक बार फिर जाना है उसे कमाने,
पिज़्ज़ा बर्गर नही,दो रोटियों की चाहत में
आज भी उसका बच्चा बहुत रोया है।
मासूम को कब थी चाहत महंगे खिलोने
की,वो रेत भी गीला होकर बह गया,जिस
पर चंद दिनों पहले वो बहुत खेला था।
कुछ तो रहम कर आसमाँ इन गरीबो पर
अब तो जीवन भी इन्हें लगने लगा है एक
कभी ना खत्म होने वाले दर्द का मेला है।
नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )
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