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जल मे थल मे जड चेतन मे,
गूज रही झंकार,
हे मात! तुम्हारी महिमा अपरम्पार,
फूलो मे प्रतिबिम्ब तुम्हारा
कलियो मे मुस्कान,
मन मोहक खुशबू से सारे,
महक रहे उद्यान
सागर की उन्ताल तरंगे ,
करती है मनुहार,
हे मात! तुम्हारी महिमा अपरम्पार,
सूर्य चन्र्द मे तेज तुम्हारी ,
तारे है धुतिमान,
चरण कमल मे नत मस्तक
ज्ञान और विज्ञान
षट् क्रतुए बारी बारी से,
मना रही त्यौहार ,
हे मात! तुम्हारी महिमा अपरम्पार;
पक्षीदल विरूदाबलि गाता,
हिमगिरि करना ध्यान,
निर्बल के बल मात दीन को,
देती जीवन दान,
गिरे हुये को गले लगाती,
करूणा की अवतार,
हे मात! तुम्हारी महिमा अपरम्पार,
विश्वासी सासो की होती,
कभी ना जग मे हार,
प्रेमामृत से शीतल करते,
नफरत के अंगार,
मन की बन्द खिडकिया खोलो, देखो छटा अपार,
हे मात! तुम्हारी महिमा अपरम्पार,
मन हो सुन्दर ,
तन हो सुन्दर,
सुन्दर हृदय विचार,
नर से नारायण बन जाये,
बने स्वर्ग संसार,
मानव प्रतिमा की पूजा हो,
होवे जय जयकार
हे मात! तुम्हारी महिमा अपरम्पार,
#सुभाषिनी भारद्वाज( शुभी)
परिचय-
नाम– सुभाषिनी भारद्वाज
साहित्यिक उपनाम—-“आधुनिक मीरा” कालेज द्वारा दिया गया नाम,, पुरस्कार सहित
राज्य–उत्तर प्रदेश
शहर—कानपुर
शिक्षा—वाणिज्य,स्नातक, लेखान्कन, पी•सी• एम(इन्टरमीडियट) एम• डी• सी टी , ए •डी •सी •ए , कोर्स आन कम्प्यूटर कानसेप्ट,, स्काउट एण्ड गाईड
कार्यक्षेत्र– लेखान्कन
विधा–आलोचना, कहानी , कविता,
सम्मान— शिक्षा , साहित्य तथा संगीत के क्षेत्र मे,
अन्य उपलब्धिया– कालेज स्तर प्रेसीडेन्ट,, मेरी रचना अन्य मैगजीन मे प्रकाशित हो चुकी है, युवा महिला साहित्य संगम की महासचिव वर्तमान (राट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय कवि, श्री बिहारी लाल तिवारी “बाबा) की शिष्या
लेखन का उद्देश्य–समाज को नयी दिशा प्रदान करना,, देश सेवा
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