भ्रष्टाचार अब व्यंग नहीं विमर्श का विषय

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jayram shukl
शरद जोशी ने कोई पैतीस साल पहले हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे व्यंग्य निबंध रचा था। तब यह व्यंग्य था, लोगों को गुदगुदाने वाला। भ्रष्टाचारियों के सीने में नश्तर की तरह चुभने वाला। अब यह व्यंग्य, व्यंग्य नहीं रहा। भ्रष्टाचार की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही व्यंग्य की मौत हो गई।
समाज की विद्रूपताओं की चीर-फाड़ करने के लिए व्यंग्य का जन्म हुआ था। परसाईजी ने व्यंग्य को शूद्रों की जाति में रखते हुए लिखा था- व्यंग्य चरित्र से स्वीपर है। वह समाज में फैली सड़ांध में फिनाइल डालकर उसके कीटाणुओं को नाश करने का काम करता है। जोशी-परसाई युग में सदाचार, लोकलाज व सामाजिक मर्यादा के मुकाबले विषमताओं,विद्रूपताओं और भ्रष्टाचार का आकार बेहद छोटा था। व्यंग्य  उन पर प्रहार करता था। लोग सोचने-विचारने के लिए विवश होते थे। भ्रष्टाचार का स्वरुप इतना व्यापक नहीं था।
व्यंग्य कब विद्रूपता के मुंह में समा गया पता ही नहीं चला। वेद पुराणों में भगवान का यह कहते हुए उल्लेख है कि हम भक्तन के भक्त हमारे। जोशी जी ने भ्रष्टाचार के लिए यही भाव लिया था। आज के दौर के बारे में सोचते हुए लगता है कि हमारे अग्रज साहित्यकार कितने बड़े भविष्यवक्ता थे। भ्र्ष्टाचार, सचमुच भगवान की तरह सर्वव्यापी है, कण-कण में, क्षण-क्षण में। कभी एक व्यंगकार ने लिखा था कि भगवान की परिभाषा और उनकी महिमा जो कि वेद-पुराणों में वर्णित है सब हूबहू भ्रष्टाचार के साथ भी लागू होती है।… बिन पग चलै,सुनै बिन काना कर बिनु कर्म करै विधि नाना। बिन वाणी वक्ता बड़ जोगी़..़़ आदि-आदि। मंदिर में, धर्माचार्यों के बीच भगवान की पूजा हो न हो, भ्रष्टाचारजी पूरे विधि-विधान से पूजे जाते हैं।
आसाराम,नित्यानंद, राम रहीम, निर्मलबाबा से लेकर धर्माचार्यों की लंबी कतार है जिन्होंने मंत्रोच्चार और पूरे कर्मकांड के साथ भ्रष्टाचार की प्राण-प्रतिष्ठा की है और हम वहां शीश नवाने पहुंचते हैं।  नए-नए नवाचार और अवतार में भी भ्रष्टाचार का कोई सानी नहीं।
आज के दौर में परसाई जी-शरद जोशी जी होते तो भ्रष्टाचार को लेकर और क्या नया लिखते! उनके जमाने में एक-दो भोलाराम यदाकदा मिलते जिनके जीव पेंशन की फाइलों में फड़फड़ाते। आज हर रिटायर्ड आदमी भोलाराम है, फर्क इतना कि वह परिस्थितियों से समझौता करते हुए परसेंट देने पर राजी है। परसेंट की यह कड़ी नीचे से ऊपर तक उसी तरह जाती है जैसे राजीव गांधी का सौ रुपया नीचे तक दस पैसा बनकर पहुंचता है।
 भ्रष्टाचार पर भारी बहस चल रही है। भ्रष्टाचारी भी भ्रष्टाचार पर गंभीर बहस छेड़े हुए हैं। चैनलों ने इसे प्रहसन का विषय बना दिया।  कभी-कभी बहस इतनी तल्ख हो जाती है कि मोहल्लों में औरतों के बीच होने वाले झगड़ों का दृश्य उपस्थित हो जाता है। एक कहती है..तू रांड तो दूसरी जवाब देती है तू रंडी़.़. एक ने कहा तुम्हारी पार्टी भ्रष्ट तो दूसरा तड़ से जवाब देता है, तुम्हारी तो महाभ्रष्ट है। टीवी शोे में एक पार्टी के प्रतिभागी ने कहा, फलांजी से बस इतनी गलती हो गई कि उन्होंने आपकी पार्टी में जाकर प्रशिक्षण नहीं लिया था। वरना लाखों करोडों गटक लेते हैं और पता भी नहीं चलता।
भ्रष्टाचार अब प्रहसन व बुद्घिविलास का विषय बन चुका है। चमड़ी इतनी मोटी हो गई कि व्यंग्य की कौन कहे गालियां तक जज्ब हो जाती हैं। एक नया फार्मूला है खुद को ईमानदार दिखाना है तो दूसरों को जोर-जोर से बेईमान कहिए। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई भी कर्मकांडी हो गई है।
बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ईमानदारी की अलख जगाने वाले नए पंडों के रूप में अवतरित हुए हैं। ईमानदारी पर प्रवचन देते-देते बाबा टाटा-बिडला-अंबानी की जमात में आ गए। बेचारे अन्ना को उसके चेलों ने गन्ना की तरह चूसकर फिर रालेगण पहुँचा दिया।
 संसद पर हमले के गुनहगार अफजल गुरू की मुक्ति के लिए अभियान चलाने वाले और उद्योगपतियों के खिलाफ याचिका में फोकट का इन्टरविनर बनने वाले पिता-पुत्र की जोड़ी शांति भूषण और प्रशान्त भूषण की टीम  नैतिकता की आचार संहिता तय करती है। कल तक मंचीय कवियों का गिरोह चलाने वाले मसखरे कुमार विश्वास इमानदारी की रुबाइयाँ लिखते हैं। राजनीति के रंगमंच पर यही सब नाटक चल रहा है।
सड़े से मुद्दों पर कैण्डल मार्च निकालने वाले भ्रष्टाचार से लड़ने चंदे के पैसे से दिल्ली तो कूंच कर सकते हैं पर अपने गांव के उस सरपंच के खिलाफ बोलने से मुंह फेर लेते हैं जो गरीबों का राशन और मनरेगा की मजदूरी में हेरफेर कर दो साल के भीतर ही बुलेरो और पजेरो जैसी गाड़ियों की सवारी करने लगता है।
इसके खिलाफ हम इसलिए कुछ नहीं बोल पाते क्योंकि यह हमारा अपना बेटा, भाई, भतीजा और नात-रिश्तेदार हो सकता है। जब शहर के भ्रष्टाचार की बात करनी होती है तो ये दिल्ली के भ्रष्टाचार पर बहस करते हैं, अपने गांव व शहर की बात करने से लजाते हैं।
 भ्रष्टाचारी कौन है? यह दिया लेकर खोजने   का विषय नहीं है। समाज में भ्रष्टाचार की प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले लोग कौन हैं? यह भी अलग से बताने की बात नहीं है। हम सबने मिलकर भ्रष्टाचार को अपने आचरण में जगह दी है।
 जिस दिन कोई पिता अपने बेटे को इसलिए तिरष्कृत कर देगा कि उसके भ्रष्टाचार की कमाई से बनी रोटी का एक टुकड़ा भी स्वीकार नहीं करेगा, कोई बेटा बाप की काली कमाई के साथ बाप को भी त्यागने का साहस दिखाएगा, परिवार और समाज में भ्रष्टाचार करने वालों का सार्वजनिक बहिष्कार होने लगेगा, उस दिन से ही भ्रष्टाचार की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी। क्योंकि भ्रष्टाचार कानून से ज्यादा आचरण का विषय है।
 कत्ल करने वाले को फांसी दिए जाने का प्रावधान है लेकिन कत्ल का सिलसिला नहीं रुका है।  कत्ल भी हो रहे हैं और फांसी भी। भ्रष्टाचारियों को कानून की सजा देने मात्र से भ्रष्टाचार रुकने वाला नहीं। क्या कोई अपने घर से भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़नें की शुरुआत करने को तैयार हैं?
#जयराम शुक्ल
परिचय: जबलपुर निवासी जयराम शुक्ला जी तीस वर्ष तक सक्रिय पत्रकारिता में रहें| देशबंधु, दैनिक भास्कर, पीपुल्स समाचार व कई अन्य अखबारों में संपादकीय दायित्व के बाद अब बतौर प्राध्यापक माखनलाल राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि. में अध्यापन। 1985 से नियमित स्तंभ लेखन देशभर की पत्र पत्रिकाओं व पोर्टल में। पाँच हजार से भी ज्यादा लेख..। पुस्तक भी है लेकिन वन्यजीव पर.. Tale of the White tiger सफेद बाघ की कहानी। साँच कहै ता मारन धावै स्तंभ देश भर में चाव से पढ़ा जाता है। वनस्पति विग्यान, इतिहास में स्नातकोत्तर, विधि व पत्रकारिता में स्नातक। 

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।