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समय चक्र को हाथो के वक्र को बदलते देखा है
दिल के ग़मो को आखो के सिकन को बदलते देखा है
ये क्या हुआ कि भृकुटी तन गयी
मन सरोवर मे एक अग्नि रेखा बन गयी
चंचल चपल चतुर वाक्य,कुछ ऐसा ही कर गयी
अब घात क्या प्रतिघात क्या,आत्मसात दिल को कर गयी
नदी के नीर को सागर समीर को,बदलते देखा है
लोंगो के ज़मीर को सुंदर शरीर को बदलते देखा है /
सहसा ऐसा भी किया जाता है
सहारा दे छोड़ा भी जाता है
असीमित जब सिमित हो जाता है
आग लगाती है सैलाब पिघल जाता है
विस्वास के दामन को घर के आँगन को बदलते देखा है
रिश्तों के सावन को प्यार के मौसम को बदलते देखा है
समय चक्र को हाथों के वक्र को बदलते देखा है ///
#डॉ. अरुण पांडे
#कवि परिचय
नाम – डॉ. अरुण पांडेय
देश विदेश मे 150 से ज्यादा कवि सम्मेलन मे शिरकत
जी News ,News 18, News 24 और आकाशवानी पे कविता पाठ
Debator विभिन्न TV चैनल
वाख्यान – अब तक 7 देशो मे ( South Africa , सिंगापुर, मारिशस , मलेशिया , कनाडा , इंडोनेशीआ , नेपाल )
वर्तमान – चिकित्सक ,AIIMS ,नई दिल्ली मे कार्यरत
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