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भारत बंद का कैसा महाजाल,
कर देता है जनता को बेहाल,
माँगे पूरी मनवाने की खातिर,
कुछ लोग करते है हड़ताल,
एक दिन भारत बंद होने से,
अर्थव्यवस्था का हो बुरा हाल,
सारे कामकाज ठप्प पड़ जाते,
दैनिक मजदूरों के होते फटेहाल,
बड़े लोग बजाते चैन की बंशी,
आम आदमी ठन ठन गोपाल,
परिणाम इसका बुरा ही होता,
स्वार्थी लोगों की ये षड्यंत्र चाल,
कहीं हो जाते दंगे,और आगजनी,
कहीं बंद रूप ले लेता विकराल,
आँखे खोलो,सुधर जाओ अब,
बुद्धि का करो सही इस्तेमाल,
शांतिपूर्ण तरीके से काम करो,
देशप्रगति को न खतरे में डाल,
आंतरिक कलह के कारण कहीं,
अपने भारत में न आ जाये भूचाल।।
नाम- डॉ स्वाति गुप्ता
साहित्यिक उपनाम- डॉ स्वाति गुप्ता
शिक्षा- पी एच डी(अर्थशास्त्र)
कार्यक्षेत्र- गृहिणी
विधा- काव्य स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन- सांझा संकलन (तेरे मेरे शब्द)
सम्मान- काव्य सम्पर्क सम्मान
लेखन का उद्देश्य- वर्तमान परिस्थितियों,समस्याओं और उनके विभिन्न पहलुओं को काव्य के माध्यम से पाठकों को जाग्रत करना।
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Good poem on Bandh