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शर्म अंग्रेजी न आने पर नहीं
बल्कि हिंदी न आने पर आए
अपनी माँ के बदले विदेशी जिनको भाए
अपनी इस आदत पर वे ही जन शर्माएं
हिंदी है जन जन की भाषा
किसी की रोटी, किसी की आशा
अंग्रेजी ही क्यों ,सीखो सारी भाषाएँ
पर निज भाषा की, न टूटें आशाएं
#मेरी_कलम_मेरे_विचार
#शिखर चंद जैन
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