नारी

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nilima mishra
भय का कारण तो जान गई भय से है मुक्त
कहाँ नारी ?
पानी के सहज थपेड़े सह बहने को विवश
क्यूं है नारी ।
है चिन्ता मन में विकट बडी कैसे मैं पार
करूँ नदिया ?
चलना है दूर बहुत मीलों  हमने ना कभी हिम्मत हारी ।
बेबस ही बनी रहूँ कब तक बरसों है दर्द
सहा हमने ,
ये गहन चुनौती कायम है ताक़त अपनी
समझे नारी ।
मन कोमल तन भी कोमल है विश्वास
मगर रखना होगा ,
कितनी भी बाधायें आये उद्यम से अब ना
हटे नारी ।
मिथ्या सहानुभूति का पथ अब छोड़ो आगे
स्वयं बढ़ो ,
दीवारों से टकरा कर ही खुद मार्ग प्रशस्त
करे नारी।
काले विकराल नागराजों की अब फुँकार
से क्यों डरना ?
जो लपक लपक कर पंजों को डँसने आयें
ना डरे नारी ।
जनमेजय के  इस महायज्ञ में आस्तीक
बनना होगा ,
है जरत्कारू की आन तुम्हें अब भी क्यों शोषित हो नारी ।
जिस मन में संशय बसता है उसका विनाश तो
 निश्चित है ,
भय मिथ्या है उसको जीते तब ही भय मुक्त बने नारी ।
# नीलिमा मिश्रा

matruadmin

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