माँ की सोन चिरइया

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garima sinh
बैठे- बैठे रोज़ मैं तकती आसमान में चिड़िया को ,
बार-बार पूछा करती अपनी सुंदर गुड़िया को ,
मन करता है उड़ जाऊ मैं एक पल को आकाश में ,
मुझको गुड़िया समझाती थी पंख कहाँ तेरे पास है,
मैं छोटी थी समझ न पाती गुड़िया से झटपट लड़ जाती ,फेंकती उसको हाँथ से ,
दिन भर मैं उदास सी रहती उस गुड़िया की बात से
मम्मी मेरे पास थी आती ,गोंदि में फिर मुझे उठती,
लाड़ लड़ाती प्यार जताती, बार-बार मुझको सहलाती!
क्यों रूठी हो गुड़िया रानी आज नही की कुछ शैतानी,
तुमको क्या है कोई परेशानी,
इतना सुनकर हुलस पड़ी मैं
गुस्से से फिर झुलस पड़ी मैं
क्यों नहीं पंख दिलाया तुमने
उड़ना नही सिखाया तुमने
चिड़िया मुझे चिढ़ाती है
गुड़िया मुझे सताती है
जाओ तुमसे बात नही करनी
तब मम्मी झट से मुस्काई
मुझको अपने पास बुलाई
गोंदि में फिर मुझे उठाया
सीने से फिर मुझे लगाया
कंधे पे सिर अपने टिका के बोली मुझको फिर सहलाक़े…….
तूँ चिडियों की रानी है
तेरी अलग कहानी है
एक दिन ऐसा आना है
तुझको भी उड़ जाना है
ये घर तेरी बगियाँ है
मैं तो बस एक माली हूँ
छोड़ हमें उड़ जाएगी
दूर देश तू जाएगी
लौट कभी ना आएगी
तू सुना कर देगी अंगना
मेरी चिड़िया खुश तू रहना
बात समझ अब आती है
मुझको बड़ा सताती है
ओ माँ मुझको अब नही उड़ना
अपने पास बुला लो ना
सीने से लगाकर मुझको गोंदी में सुला लो ना !!
#गरिमा सिंह
परिचय- 
नाम-  गरिमा अनिरुद्ध सिंह
साहित्यिक उपनाम-मधुरिमा
राज्य-गुजरात
शहर-सूरत
शिक्षा- एम ए प्राचीन इतिहास
कार्यक्षेत्र-शिक्षण
विधा – हास्य ,वीर रस ,शृंगार

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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