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नेह डोर ऐसी बँधी, जिसका कहीं न मोल ।
त्याग और अनुराग का ,रिश्ता ये अनमोल ।।
भावों का गुंथन हुआ, जाग उठा उल्लास ।
कच्चे धागे ने किया, पक्का मन विश्वास ।।
राखी के त्यौहार ने, कर डाला अनमोल ।
वरना धागे का रहा, दो कौड़ी का मोल ।।
भरी सभा में द्रोपदी, बांध गई थी डोर ।
भरी सभा में कृष्ण ने, दिया न उसका छोर ।।
अक्षत, रोली ,राखियॉ, आए सबके द्वार ।
रहे सदा शाश्वत यहॉ, राखी का त्यौहार ।।
#संदीप सृजन
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