मेरी_कलम_मेरे_विचार

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shikhar chandra jain
हम फिर से आदम बन गए हैं
कच्चा मांस फिर पसन्द करने लगे हैं
अंतर इतना ही….
पहले जानवर का करते थे
अब औरत का शिकार करने लगे हैं
कपड़े भी कहाँ सुहाते हैं हमें आजकल?
खुद तो दिल,दिमाग से नंगे हैं ही
सामने औरत दिख जाए
तो उसे भी नंगा करने में जुट जाते हैं
पिल पड़ते हैं एक पागल सी भीड़ लेकर
तब हम मनुष्य नहीं एक भीड़ बन जाते हैं
आजकल भीड़ इंसान कहाँ रही?
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शरीफ और बदमाश में अंतर भी थोड़ा सा रहता जा रहा है।
बदमाश तन से नंगा करते हैं किसी को
और शरीफ मन ही मन कर लेते हैं ऐसा
चाचा,ताऊ,कजिन,फ्रेंड की छोड़ो ….
पिता और भाई पर भी कहाँ रहा पूरा भरोसा
गुरुजन भी गिद्ध की तरह नोचने को रहने लगे हैं आतुर
हम जानवर तो कत्तई नहीं,
वे कहाँ छोटे बच्चों का यौन शोषण करते हैं?
हम आदमयुग में पहुंच गए हैं फिर से
ये रौशनी,स्कूल,आधुनिकता सब नकली है
हर ओर अँधेरा है,गुफाएं हैं,कच्चे मांस की गन्ध है
मान लीजिये….
हम आदिम युग में हैं फिर से
#शिखर चंद जैन

matruadmin

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