कविता रोती शब्दों से

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aalok kumar singrol
कविता रोती शब्दों से ,कवि गीत बनाता जाता है
कुछ भूले बिसरे लम्हों के संगीत बनाता जाता है
 
पनघट पर जब घट फूटे तो ,कविता निकल के आती है
कोई भँवरा मधु लूटे तो ,कविता निकल के आती है
शोभा तब है नारी की ,जब लाज ही उसका गहना हो
कोई यौवन सज निकले,तब कविता निकल के आती है
जीवन के हर इक रस से वह प्रीत बनाता जाता है
कविता रोती शब्दों से कवि गीत बनाता जाता है
 
कवि हो निपट अकेले तो, कविता खुद ही बन जाती है
अक्स को हाथों में ले ले तो ,कविता खुद ही बन जाती है
कविता कवि की काया है ,हर शब्द ही  उसके दर्पण है
कवि शब्दों से जब खेले तो, कविता खुद ही बन जाती है
कवि हर सूने उपवन को मनप्रीत बनाता जाता है 
कविता रोती शब्दों से ,कवि गीत बनाता जाता है
परिचय- 
आलोक कुमार सिंगरौल
जन्म स्थान-शहडोल
वर्तमान  में भोपाल में सिविल सेवा की परीक्षा हेतु अध्ययनरत
निवासी-सतना

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