लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में हजारों रंग के नजारे बन गए…

1 0
Read Time3 Minute, 6 Second

एक कवि जिसने जिंदगी के हर रंग को गीतों में पिरोया… एक नहीं, दो नहीं… तीन तीन पीढ़ियां जिनके गीतों को गुनगुनाते हुए बड़ी हुईं…आज उस महान कवि गीतकार नीरज का जन्म दिन है…

एक ऐसा गीतकार जिसने प्यार का वह सदाबहार गीत रचा जिसका एक एक लफ्ज सुनने वाले के दिल में हलचल पैदा कर देता है…

शोखियों में घोला जाय फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलाई जाय थोड़ी सी शराब
होगा वो नशा जो तैयार वो प्यार है प्यार…

उस शख्स ने जब विरह के भाव को नज्मों में पिरोया तो उस दर्द को भी जमाने ने उसी शिद्दत के साथ महसूस किया…

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
लूट गये सिंगार सभी बाग के बबूल से
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे…

जब बात जिंदगी और मौत की चली तो इस आखिरी सच्चाई को भी कितनी आसानी से समझा दिया…

कफ़न बढ़ा तो किस लिए नज़र तू डबडबा गई ?
सिंगार क्यों सहम गया बहार क्यों लजा गई ?
न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ बस इतनी सी बात है
किसी की आँख खुल गई किसी को नींद आ गई…

आज उनके गीतों को याद करने के साथ उनसे जुड़ी कुछ स्मृतियाँ जो धरोहर के रूप में मेरे पास हैं उन्हें आप सबों के साथ साझा करने का भी दिन है…1984 में जब मेरी तीसरी किताब ‘अनुभूति दंश’ साठ गजलों के संग्रह के रूप में प्रकाशित हो रही थी उसी दौरान मेरा उनसे संपर्क बना था …उन्होंने उस वक्त विज्ञान के उस छात्र को प्रोत्साहित किया जो हिंदी साहित्य में शब्दों को बाँधने की कला सीखने की कोशिश कर रहा था… उनके स्नेह और मार्गदर्शन ने मेरे भीतर के रचनाकार को विकसित होने में बड़ी भूमिका निभाई…

फिर एक अवसर था जब अक्टूबर 2015 में आईटीएम यूनिवर्सिटी, ग्वालियर में उनका आगमन हुआ… वहां उन्हें सुनने और उनका आशीर्वाद लेने के दौरान मेरे साथ जुड़ी यादों को फिर से ताजा करने का सौभाग्य बेटे सौरभ को प्राप्त हुआ…

बहरहाल आज उनके जन्मदिन पर इस कविता को गुनगुनाते हुए उस महान आत्मा को नमन करें…

छिप छिप अश्रु बहाने वालो! मोती व्यर्थ बहाने वालो!
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता…

#डा. स्वयंभू शलभ

matruadmin

Next Post

नव-वर्ष और विश्व हिंदी दिवस पर मन की बात : सीधी सच्ची बात।

Mon Jan 6 , 2020
मन की बात अपनों से न कहूँ तो किससे कहूँ ? शायद कुछ लोग मेरी बात से सहमत न हों , मुझ से रुष्ट हो जाएँ, भला-बुरा कहें । हो सकता है कि वे ही सही हों पर मैं तो अपने मन की ही कह सकता हूँ । जो देखता […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।