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इस संसार में हम और आप सभी लोग जन्म लेकर आते है और कुछ दिनों या सालो का इन्तेजार और समय व्यतीत करके फिर उसी जगह वापिस चले जाते है / सिर्फ छोड़कर जाते है कुछ अच्छे और सच्चे या कुछ विवादित शब्दकोष और फिर लोग जाने के बाद उन्ही पर चर्चा करते रहते है, और कुछ समय के उपरांत उन्हें भी भूल जाते है / यही तो संसार है , तभी तो लोग कहते है की क्या लेकर आया था और क्या लेकर जाऊंगा / जो कुछ कमाया और जो कुछ गमाया वो भी सब यही पर छोड़कर एक दिन ये रैन बसेरा को छोड़कर बिन बताये ही चले जाएंगे / कुछ जीवन में ऐसा घटा जिसको सुनकर, जैसे जीवन में कुछ बचा ही नहीं ;-
अर्थी पर पड़े हुए शव पर सफ़ेद कपड़ा बाँधा जा रहा है, गिरती हुई गरदन को सँभाला जा रहा है। पैरों को अच्छी तरह रस्सी बाँधी जा रही है , कहीं रास्ते में मुर्दा गिर न जाए। गर्दन के इर्दगिर्द भी रस्सी के चक्कर लगाये जा रहे है। पूरा शरीर लपेटा जा रहा है, अर्थी बनानेवाला बोल रहा है:
‘तू उधर से खींच’ दूसरा बोलता है ‘मैने खींचा है, तू गाँठ मार।’
लेकिन यह गाँठ भी कब तक रहेगी ? रस्सियाँ भी कब तक रहेंगी ?
अभी जल जाएँगी… और रस्सियों से बाँधा हुआ शव भी जलने को ही जा रहा है ! धिक्कार है इस नश्वर जीवन को … !धिक्कार है इस नश्वर देह की ममता को… ! धिक्कार है इस शरीर के अध्यास और अभिमान को…!
अर्थी को कसकर बाँधा जा रहा है। आज तक तुमने जो नाम कमाया सेठ/साहब/नेता/ अभिनेता/डॉक्टर/इंजीनियर……... सब लोगो की लिस्ट (सूची) में था। अब वह मुर्दे की लिस्ट में आ गया। लोग कहते हैं ‘मुर्दे को बाँधो जल्दी से, अब ऐसा नहीं कहेंगे कि ‘सेठ को /साहब / नेता को…….बाँधों’ पर कहेंगे मुर्दे को बाँधो। हो गया तुम्हारे पूरे जीवन की उपलब्धियों का अंत, आज तक तुमने जो कमाया था वह तुम्हारा न रहा। आज तक तुमने जो जाना था वह मृत्यु के एक झटके में छूट गया / तुम्हारे ‘इन्कमटेक्स’ (आयकर) के कागजातों को, तुम्हारे प्रमोशन और रिटायरमेन्ट की बातों को, तुम्हारी उपलब्धि और अनुपलब्धियों को सदा के लिए अलविदा होना पड़ा। हाय रे हाय मनुष्य तेरा श्वास। हाय रे हाय तेरी कल्पनाएँ, हाय रे हाय तेरी नश्वरता !हाय रे हाय मनुष्य तेरी वासनाएँ ! आज तक इच्छाएँ कर रहा था, कि इतना पाया है और इतना पाँऊगा, इतना जाना है और इतना जानूँगा, इतना को अपना बनाया है और इतनों को अपना बनाँऊगा, इतनों को सुधारा है, औरों को सुधारुँगा।
अरे ! तू अपने को मौत से तो बचा ? अपने को जन्म मरण से तो बचा, देखें तेरी ताकत। देखें तेरी कारीगरी ! तुम्हारा शव बाँधा जा रहा है। तुम अर्थी के साथ एक हो गये हो। शमशान यात्रा की तैयारी हो रही है। लोग रो रहे हैं। चार लोगों ने तुम्हें उठाया और घर के बाहर तुम्हें ले जा रहे है। पीछे-पीछे अन्य सब लोग चल रहे है। कोई स्नेहपूर्वक आया है, कोई मात्र दिखावा करने आये है। कोई निभाने आये है कि समाज में बैठे हैं तो…
दस पाँच आदमी सेवा के हेतु आये है। उन लोगों को पता नहीं कि कल तुम्हारी भी यही हालत होगी / अपने को कब तक अच्छा दिखाओगे ? अपने को समाज में कब तक ‘सेट’ करते रहोगे ? सेट करना ही है तो अपने को परमात्मा में ‘सेट’ क्यों नहीं करते ? दूसरों की शवयात्राओं में जाने का नाटक करते हो ? ईमानदारी से शवयात्राओं में जाया करो। अपने मन को समझाया करो कि तेरी भी यही हालत होनेवाली है । तू भी इसी प्रकार उठनेवाला है, इसी प्रकार जलनेवाला है। बेईमान मन ! तू अर्थी में भी ईमानदारी नहीं रखता ? जल्दी करवा रहा है ? घड़ी देख रहा है ? ‘आफिस जाना है… दुकान पर जाना है…’ अरे ! आखिर में तो शमशान में जाना है ऐसा भी तू समझ ले। आफिस जा, दुकान पर जा कहीं भी जा लेकिन आखिर तो शमशान मेँ ही जाना है। तू बाहर कितना जाएगा ?
क्षण क्षण वीतराग भगवान के स्मरण में ही व्यतीत करो क्या पता कौन सा क्षण अंतिम हो? पल पल मृत्यु की और बढ़ रहे हो और संसार में बेहोश हो। कब बेहोशी ख़त्म करोगे? और अपने आपको कब इंसानो और पशुओ की सेवा में समर्पित करोगे, यही सच्चा मानव जीवन है /
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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