अष्टम अनुसूची का हिंदी पर बढ़ता कुप्रभाव …

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हिंदी टूटने से बचाओ

बंधुओं भाषा जनगणना 2011 की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद यह बात देखने में आ रही है कि जैसे जैसे हिंदी की  क्षेत्रीय भाषाओं को अष्टम अनुसूची में वर्णित किया जा रहा है, उससे हिंदी का महत्व घटता जा रहा है । उदाहरण के लिए जहां हिंदी ने 1971 से 1981 तक 27.12 प्रतिशत, 1981 से 1991 तक 27.84 प्रतिशत तथा 1991 से 2001 तक 28.09 प्रतिशत की बढ़ोतरी की थी , वहीं यह मैथिली भाषा के अलग हो जाने के कारण 2001 से 2011 तक केवल 25.10% रह गई है । अभी तो यह शुरुआत है । वर्तमान में हिंदी को मातृभाषा मानने वाले 52 करोड़ 83 लाख 47 हजार 193 लोग हैं । परंतु यह आंकड़े हिंदी के अंतर्गत 56 बोली भाषाओं को मिलाकर है । यदि इन 56 बोली भाषाओं को अलग कर दिया जाए तो हिंदी को मातृभाषा मानने वाले केवल 32, 22, 30, 097 ही लोग होंगे। इन 56 बोली भाषाओं में से कई बोली भाषाएं अष्टम अनुसूची के अंतर्गत वर्णित होने हेतु विचाराधीन है । कल्पना कीजिए कि जिस दिन इन सभी बोली भाषाओं को अष्टम अनुसूची में वर्णित कर दिया जाएगा उस दिन जिस हिंदी को मातृभाषा मानने वाले आज भारत में जो 43.63 प्रतिशत लोग हैं वह घटकर 25.35 ही रह जाएगा  । फिर जिस हिंदी का आज आप डंका बजा रहे हैं और विश्वभाषा बनाने चले हैं , उस हिंदी की अपने ही देश में क्या हालत हो जाएगी , आप कल्पना भी नहीं कर सकते । मैथिली सहित हिंदी की सभी क्षेत्रीय बोली भाषाओं के विद्वतजनों को भी सोचना होगा कि आपकी क्षेत्रीय बोली भाषाएं भी तभी तक सुरक्षित और विकसित होंगी , जब तक उसे हिंदी का संरक्षण प्राप्त होगा । नहीं तो जिस प्रकार से आज अंग्रेजी हमारे चूल्हा चौकी तक पहुंच चुकी है, वहां भला हमारी बोली भाषाएं सुरक्षित कैसे रह पाएंगी ।  वर्तमान में भारत में  कुल 19569 मातृभाषाएं हैं । अष्टम अनुसूची के अंतर्गत 22 भाषाएं हैं तथा 99 अन्य भाषाओं को मिलाकर कुल 121 भाषाएं व 270 मातृभाषाएं हैं, जिनको बोलने वाले वाले कम से कम 10000 लोग हैं।  (वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)

#डॉ राजेश्वर उनियाल, मुंबई

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