गरीब मां बाप की सुंदर मोढी
अंधेरे में पल पल हुई बढ़ी
मांग मांग कर कापी किताब
चौथी कक्षा तक ही पढ़ी
जैसे जैसे बीता साल
बिटिया करती गई कमाल
काम काज कर हुई सयानी
रखती मां बाप का ख्याल
पापा करते मेहनत मजदूरी
पानी भरती मां बेचारी
घर घर काम वो करती
गरीबी की मार बढ़ी लाचारी
मां बाप की चिंता बढ़ी
पूनम की चांद की तरह बढ़ी
प्यार से उसको ब्याह रचाया
दुल्हन बन डोली चढी
आदमी निकला बड़ा निकम्मा
जूये ताश में हमेशा था रमा
घर में पढ गये खाने के लाले
जेवर बर्तन गिरवी रख डाले
साहुकार ने किया फरमान
पैसे दे ले जा सामान
गिरवी रख जा कोई चीज
रख अपने गृहस्थी का मान
किराए से सब कुछ मिलता है
कुछ साल आराम से जी सकती हैं
उसने अपने घर के खातिर
अपना कोख ही गिरवी रख डाली।
अपना कोख ही गिरवी रख डाली।
#सिद्धेश्वरी सराफ (शीलू)जबलपुर मध्य प्रदेश