वो उसका वास्ता देकर आज भी मुस्कराते हैं,
दोस्त हैं अपने,कसम से आज भी
सताते हैं,
इसमें भी प्यार छुपा है
इन यारों का,
आंसू भी खुद ही देते हैं और मरहम भी खुद ही लगाते हैं॥
यादों का क्या है हरदम सताती है।
माँ की या महबूबा की,दोनों रुलाती हैं॥
प्यार माँ से प्यार करोगे,तो पार जाओगे।
महबूबा अगर बेवफा निकली तो डूब जाओगे॥
दुआ ले न सको तो कोई बात नहीं,
बददुआ मत लेना साहिब,
माँ के आशीष से बड़ा कोई मलहम नहीं साहिब॥
महबूबा से,मेहबूब से प्यार, खूब करना साहिब,
इल्तिजा बस इतनी है,
माँ-बाप के प्यार को याद रखना साहिब।
हम से हमारी पहचान मत छीनना साहिब,
सब कुछ ले लेना मुझसे मेरा,
बस,
माँ का प्यार मत छीनना साहिब॥
#डॉ. विष्णुकान्त अशोक
परिचय: डॉ. विष्णुकान्त अशोक की जन्मतिथि-१० जुलाई १९७० एवं जन्म स्थान-हाथरस(उ.प्र.)है। आपका निवास उत्तर प्रदेश के शहर-हाथरस में ही है। शिक्षा-एमए के साथ ही पीएचडी (अंग्रेजी) है,जबकि कार्यक्षेत्र-वाराणसी, देवरिया,हाथरस है। सामाजिक क्षेत्र-जनपद हाथरस है। आपने मिश्रित विधा अपनाई हुई है। नई दिल्ली से एक प्रकाशन ने आपकी किताब छापी है। आपके लेखन का उद्देश्य-देशभक्ति की भावना जिंदा रखना,सामाजिक भेदभाव पर प्रहार,जातिवाद का जहर कम करना,इंसानियत का प्रसार,स्वस्थ्य मनोरंजन, नई सोच पैदा करना,चीजों- घटनाओं को सही और अलग नजरिए से देखना और दिखाना है। साथ ही भारत को सबसे अच्छा और सबसे श्रेष्ठ राष्ट्र बनाने में प्रयास करना है।