सुनो सुनो रे भाई
मद्यपान अंधियारा लाई
जिस शरीर में यह पहुंच जाए,
नाड़ी मंडल झंकृत हो जाए ।
नस नस खिंचाव बढ़ जाए,
निष्क्रिय चेतना शून्य हो जाए ।
जीवन ऐसा अभ्यस्त हो जाए ,
बिन इसके तन सुध न पाए।
नशे में ही सारे सुख पाए ,
सारी चिंता, दुख भूल जाए ।
बना दे दिवालिया इसकी संगति,
चरित्र पतन, अपराधी प्रवृत्ति ।
तन-मन – धन की होवे क्षति
दुर्बल बुद्धि, जड़ ,अर्ध विक्षप्ति।
दुखी हो जाता सुखी परिवार,
मान सम्मान का होता ह्रास ।
मद्यपान का कर दो त्याग ,
जीवन गए हर्ष का राग ।।
जीवन में खुशियाँ आयेंगी,
परिवार में आनन्द लायेंगी।
सुख- शान्ति सरिता बहेगी,
मान – प्रतिष्ठा खूब मिलेगी ।
#आशा जाकड़