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सब करते हैं मांग यहां अधिकारों की,
गिनती कम है लेकिन ज़िम्मेदारों की।
झूठे लोग भी अब धरने पर बैठे हैं,
ये रीति है एक यहां बीमारों की।
सच्चाई की पौध लगाई गांधी ने,
फसल उगी फिर कैसे खर-पतवारों की?
हम क्यों ये गांधी-गांधी चिल्लाते हैं,
जबकि गांधी चीज़ हुई बाज़ारों की।
कैसे-कैसे करके ऊंचे वृक्ष बने,
हमको कोई याद भी है आधारों की?
मरने-मर जाने को सब आमादा हैं,
मुझको आंखें लाल दिखें अखबारों की।
कलम उठाने वालों खुद में प्राण भरो,
फिर से कोई तान लिखो हुंकारों की॥
#अंकित दीप कश्यप
परिचय: अंकित दीप कश्यप की शिक्षा वर्तमान में एमए जारी है। आपकी जन्मतिथि-१५ मार्च १९९७ और जन्म स्थान-मुजफ्फरनगर है। आप शहर-मुजफ्फरनगर(उत्तर प्रदेश)में ही रहते हैं। कार्यक्षेत्र-मुजफ्फरनगर में ही कम्प्यूटर अॉपरेटर हैं। विधा-ग़ज़ल,कविता (तुकान्त-अतुकान्त)है। एक साहित्यिक संस्था के वार्षिक संकलन में रचनाछपी है। कुछ क्षेत्रीय सम्मेलनों में भाग लिया है। आपके लेखन का उद्देश्य-मानव व्यवहार में निरन्तर बढ़ते छल तथा सामाजिक बुराईयों पर चोट करना है।
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