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काव्य-संग्रह – “खोजना होगा अमृत कलश “
कवि – राजकुमार जैन राजन
प्रकाशन – अयन प्रकाशन , 1/20 , महरौली , नई दिल्ली – 110030
मूल्य : 240 रुपये
संस्करण : प्रथम 2018
पृष्ठ – 120
पुस्तक प्राप्ति हेतु
सम्पर्क नम्बर 09828219919
जाने-माने बाल साहित्यकार श्री राजकुमार जैन राजन आज हिंदी साहित्य सृजन क्षेत्र में ही नही अपितु हिंदी साहित्य के हर क्षेत्र में अपना वजूद फैला चुके है । आप अपने सृजन द्वारा पाठकों को आकर्षित करने में आज बहुत ही आगे है । यह महान हस्ती केवल साहित्य सृजन करके ही शांत नही बैठी हैं, महासागर के विशाल लहरों के तरह कई पत्र पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रबंधन, प्रकाशन करने के साथ-साथ नई पीढ़ी को साहित्य सृजन में साथ लेकर बढ़े है । राजस्थानी तथा हिन्दी लेखन में खुद के परिपक्व हाथ होने के साथ-साथ दूसरों को प्रोत्साहित करने के लिए नव लेखकों को अनेक सम्मान, पुरस्कार देने के , उनकी पुस्तकों के प्रकाशन के साथ ही सम्मान समारोह के आयोजक भी हैं । राजन जी की बाल साहित्य विधा में 36 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है और 100 से अधिक सम्मानों से सम्मानित है । आपकी कई पुस्तकें पंजाबी, गुजराती , मराठी, उड़िया, एंव अंग्रेजी, असमिया आदि कई भाषाओं में अनुदित हो प्रकाशित हो चुकी है । सच में कहा जाए तो राजकुमार जैन राजन जी साहित्य क्षेत्र में राजन है ।
“खोजना होगा अमृत कलश” काव्य-संग्रह द्वारा जीवन मूल्यों की स्थापना की है । राजकुमार जैन राजन जी की कविताएँ जहाँ जीवन में आशा व सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं वहीं जीवन को जीने का सलीका और सम्बल भी देती हैं ।
इस छंदमुक्त काव्य-संग्रह पढ़ने के बाद ऐसा लग रहा है जैसे वर्तमान विष भरी दुनिया में अमृत कलश ढूंढते हुए हजारों कवि सजग हो उठे हैं । ऐसे में मैं कहना चाहूंगी कि “खोजना होगा अमृत कलश” शीर्षक कविताओं के भाव के साथ शत प्रतिशत सार्थक है । ओर कवि की सघन संवेदना डें कविताओं के माध्यम से प्रकट होती है।
“खोजना होगा अमृत कलश” काव्य-संग्रह की विशेष कविताओं की कुछ पंक्तियों को मैं आप सबसे बांटना चाहूंगी ।
पहली कविता “लाखों संकल्प” की पंक्तियाँ….
“कौन रोकेगा मन से मन का युद्ध
शरों से विद्ध भावना पुत्र भीष्म-सा
शर शैया पर पड़ा विवेक कराह रहा है
और युधिष्ठिर-दुर्योधन जैसे
लाखों संकल्प
हाथ पर हाथ धरे
चित्रलिखित से खड़े हैं ।”
कवि मन वर्तमान के लोग लाचार विवेक के साथ शर विद्ध शैया पर सोया भीष्म की तरह कराह रहे हैंं और हाथ पर हाथ धरे चित्रलिखित से खड़े हैंं ।
ऐसे ही वर्तमान समाज को प्रश्न करता हुआ कवि मन में से पचास कविताओं में से “सार्थकता” , “अंतहीन अनुसंधान” , “बेरोजगार” , “खण्ड- खण्ड अस्तित्व” , “एकान्त अनुभव” , “व्यामोह” , “अर्थ खोते रिश्ते” , “एक सवाल”,अस्तित्वबोध” ,कथा व्यथा की” और “जीवन का चक्रव्यूह” में वर्तमान अत्याचार और शोषण भरे समाजों में से मानवता को बाहर निकालकर जीवन को सार्थकता देने की प्रयास करना । कवि महोदय ने “जीवन का चक्रव्यूह” में कहा हैं….
“आँखों में तैरता तुम्हारा स्वप्न
रेगिस्तानी सूने धोरों-सा
मिट नहीं पायेगा
टूटने की उम्मीदें
हिमालय-सी मज़बूत होकर
जीवन के चक्रव्यूह को ही उलट देगी…”
इसी प्रकार इस संग्रह की अन्य रचनाएँ “जिन्दगी का गीत” , “अंधकार के बीज” , “तुम कौन हो” , “हाथ में बसंत” , “सूखे फूलों की गंध” , “एक सूरज फिर उगाना होगा” , “आशा की लौ जलती रहेगी” और “हथेली में सूरज उगाओ” आदि के द्वारा सम्पूर्ण मानव को आह्वान करते है कि दुनिया में नये सूरज उगाने हैं । डें कविताओं में बिम्बों ओर मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
कभी-कभी कवि अपनी बचपन को ढूंढकर विचलित हो जाते है । “बचपन की बरसात” में लिखा है…..
“आँगन में बैठे पिता के चेहरे पर
चिंता की लकीरें
और कोने में दुबका हुआ
मेरा उच्छृंखल बचपन….”
कवि के मन के कोने-कोने में कवित्व छुपे है चाहे बचपन की स्मृति हो या सामने दिखें पत्थरों में खिलता फूल ।
किसी कवि की कविता उसके विज़न के कारण महत्वपूर्ण होती है, अन्यथा वह एक शब्द पुंज बनकर रह जाती है। राजकुमार जैन राजन की कविताओं में सकारत्मकता है ऐसी कारण ये सफल हैं।
राजकुमार जैन राजन जी के परिपक्व सोच जीवन तथा संसार के सटीक अनुभवों भरा यह काव्य-संग्रह ना ही सिर्फ एक काव्य-संग्रह है बल्कि यह मानव को मानवता में लाने का तथा विष भरे संसार को सारगर्भित अमृत कलश को प्राप्त करने काएक सफल व सार्थक प्रयास है । मैं आशा करती हूँ कि पाठकवर्ग “खोजना होगा अमृत कलश” काव्य-संग्रह को पढ़कर अपने मन में खुद को जीवित करने की अमृत तथा उर्जा खोज पाएं ।ऐसा अनमोल सृजन हम सबको प्रदान करने हेतु राजकुमार जैन राजन जी का हार्दिक आभार । अंत में फिर से ऐसी उत्कृष्ठ कृति पढ़ने के लिए मिलने के लिए आभार प्रकट करते हुए शुभकामनाएँ भेंट करती हूँ ।
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है।
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