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इस बात का डर है वो कहीँ रूठ न जायें I
नाजुक से है अरमान मेरे टूट न जायें l
फूलों से भी नाजुक है उनके होठों की नरमी I
सूरज झुलस जाये ऐसी सांसों की गरमी I
इस हुस्न की मस्ती को कोई लूट न जाये I
इस बात का डर है – – – – – – – – – – – – – 1
चलते है तो नदियों की अदा साथ लेके वो
घर मेरा बहा देते है बस मुस्कुराके वो I
लहरों में कहीँ साथ मेरा छूट न जाये I
इस बात का डर है वो कहीँ – – – – – – – 2
छत पे गये थे सुबह तो दीदार कर लिया I
मिलने को कहा शाम को इनकार कर दिया I
ये सिलसिला भी फ़िर से कहीँ टूट न जाये I
इस बात का डर है वो कहीँ रूठ न जायें—-3
की क्या गारंटी है की फिर से कही वो रूठ न जाये /
मिलाने का बोल कर कही गम न जाये /
हम बैठे रहे बाग़ में उनका इंतजार करके /
इसी बात का डर है कही वो फिर से रूठ न जाये —४
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।
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