सनन सनन करती चलती पुरवाई है।
मौसम की मुझसे ई कैसी रुसवाई है।।
तेज हवा के झोंके आकर
पूरव से पश्चिम बल खाकर
बादल को उड़ा ले जाते हैं
तेज तपिश क्यूँ तड़पाते हैं
घिर -घिर कर यह चहुँओर
चहुँओर छाई घटा घनघोर
दुमक दुम बादल करते
बारिश को मनवा तरशे
घनघोर घटा क्यूँ अब तक न आई है।।
तन व्याकुल मन व्याकुल
हुआ व्याकुल जग संसार
पशु पक्षी व्याकुल हो गए
कुछ प्यासे भी मर गए
फसलों का हुआ बेहाल
सूख गई मक्का औ दाल
गन्ना भी है अब सूख गया
मेरे प्रभु औघड़ करो दया
खाने को पड़ जाएंगे लाले
बचा न कुछ कृषक के पाले
खेतों से पानी की यह कैसी जुदाई है।।
कुछ समय पुरवाई रूकवा दो
थोड़ा पछियाव नाथ चलवा दो
पुरवा पछुआ के टक्कर से
होगी फिर बरसात प्यारी
फिर से कल्ला उठेगी
मेरे आंगन की क्यारी
जो अबकी भीषण गर्मी से झुराई है।।
#आशुतोष मिश्र तीरथ
जनपद गोण्डा