शनि जयंती पर विशेष
तिरवेणी उज्जैन में,शिपराजी के घाट।
ढैया साढे सात है, कीजे शनि का पाठ।।
जय जय देवा शनि महराजा।
पूरण करते सबके काजा।।
पिंगल रोद्रा मंद शनैश्वर ।
सोरि छायासुत परमैश्वर।।
चार भुजा अरु श्याम शरीरा।
संतन रक्षा हरते पीरा।।
कानन कुंडल गले में माला।
हाथ गदा लम्बा है भाला।।
दीन दुखी के तुम रखवारे ।
दुष्ट जनों को ताड़नहारे।।
तुम ही सबका मंगल करते।
धन वैभव दे विपदा हरते।।
सूरज सुत तप कीन विशेषा।
जनहित काजा देश विदेशा।।
भगिनी भद्रा यमुना तारे।
यम भ्राता मां छाया प्यारे।।
नौ गुना धरती से भारी।
छठे ग्रह के तुम अधिकारी।।
काला अंबर काला वेशा।
उड़दतेल अरु लोह विशेषा।।
न्यायदेव जी आप कहाते।
सब भक्तों को पार लगाते ।।
टेढ़ी दृष्टि पडे तुम्हारी ।
जग में होवे हाहाकारी।।
नो वाहन पर करे सवारी ।
महिमा तेरी जग से न्यारी।।
गज गर्दभ सिंह भैंसा मोरा।
काग सियार हंसा घोड़ा।।
हनुमंता के तुम आभारी।
मंगल कारी पीड़ा हारी।।
जब रावण ने आंख दिखाई।
सारी लंका खाक मिलाई।।
राज विभीषण को दिलवाई।
तोरी कृपा बड़ी सुखदाई ।।
राजारामा वन वन भटके।
सोना मृग के कारण अटके।।
नल दमयंती कथा पुरानी।
गया राज सब भय सन्यासी।।
तारा हरिचंद बिके बजारा।
रोहित भी संग राजकुमारा।
पांचो पांडव कष्ट उठाया ।
जबजब पडती तुम्हरी छाया।।
राजा विक्रम लगा कलंका।
चोरी हार हो गई शंका।।
जब राजा ने कही सुनाई।
साढ़े साती मुक्ती पाई ।।
जो नर शनि का वंदन करते।
जीवन जी भव सागर तरते।।
सिगणापुर है धाम तुम्हारा।
दर्शन करते भगत हजारा।।
शनि की पूजा शनि का वारा।
शनि की महिमा जीभ उचारा।।
शनिवार व्रत करें हमेशा।
सुमरे हनुमत अरु महेशा।।
शनि चालीसा जो कोई गावे।
धन माया सुख अगणित पावे।।
डॉ.दशरथ मसानिया
आगर(उ.प्र.)