#सुशील दुगड़ “स्पर्श”अंकलेश्वर(लुहारिया)
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टूटा हूं आज हालातों से,
मगर झुका नहीं हूं मैं ।
थका हूं उलट हवाओं से,
मगर रुका नहीं हूं मैं ।
माना कश्ती मेरी टूटी है,
और दूर बहुत किनारा है।
किस्मत भी मेरी रूठी है,
नहीं कोई और सहारा है ।
बढ़ा जा रहा हूं मौजों पे,
फिर भी अपनी मस्ती में ।
लेकर पतवार हौसलों की,
चला रहा अपनी कश्ती मैं।
बांध लिया कफन सिर पे,
इन तूफानों से क्या डरना।
मरना ही है एक दिन तो,
क्यों घुट – घुट कर मरना ।
जो भी होगा देखा जाएगा,
कदम नहीं पीछे हटना ।
खौफ नहीं जरा भी मन में,
अब आगे ही आगे बढ़ना ।
‘स्पर्श’ न हो साहिल तोभी,
हिम्मत नहीं मैं हारूँगा ।
हालातों के चक्रव्यूह को,
अभिमन्यु बन मैं काटूँगा ।