औरत के हर महीने का दर्द

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jayati jain

आज की सुब्ह बाकी गुजरी सुब्ह से अलग थी, सुब्ह आंख खुली तो एहसास हुआ दर्द का, पूरे शरीर में दर्द हो रहा था ! थोडी देर बाद हुआ वही जिसकी आशंका थी, अब दर्द अपनी सारी हदे तोड़ रहा था, पानी के बिना मछली जेसी हालत थी, बिस्तर पर दोनों हाथों से अपने पेट को दबाये करवटें ले रही थी ! हिम्मत इतनी भी नहीं कि उठ कर अपना कुछ काम कर सकुं !

पिछले बार की ही बात है जब टेबल पर एक हाथ और पेट पर एक हाथ रखे, सिर झुकाये बैठीथी स्कूल में ! दर्द के मारे बस चीख ही नहीं निकल रही थी !चुपचाप बैठी रही, कमर में असहनीय दर्द हो रहा था ! ऐसा महसूस हो रहा था कि किसी ने कुर्सी से बान्ध दिया हो, अब उठने पे कुर्सी का वजन साथ लेकर उठना होगा !

जोर जोर से चिल्लाने का, रोने का मन कर रहा था, बहुत ही असहनीय पीडा थी, जिससे औरतें हर महीने गुजरती है! शिक्षकाये , स्कूल में उसकी हालत देखकर समझ गयी कि क्या परेशानी है, और थोडा सा हसी बोली इतनी परेशानी होती है तो आज स्कूल क्युं आयी ?

साथ पडाने वाले शिक्षक, जो पुरुष हैं, आते जाते उसके ऊपर ध्यान दे रहे थे, कि इतना बोलने वाली आज इतनी चुप, चेहरे पे 12 बज रहे हैं ! उन्हें समझ तो आ गया होगा, जब भी लड़की पेट दर्द कहती लोगों का दिमाग यहीं चलता है!

तीसरे दिन जब पैड लेने गयी थी, पहले जब तक घर पे थी तो मां, पापा से मागां देती थी, लेकिन अब इस शहर में अकेली थी, अब खुद ही जरुरत की चीज खरिद्नी पड़ती है ! एक दुकान पर पैड लेने गयी थी, दुकानदार और उसके यहां काम करने वाला लड़का पैड का नाम सुनकर हस दिया, जेसे कोई शर्मनाक काम करने जा रही थी या कर दिया हो !

अब गुस्सा आ गया था ,बेशरम बनके पूछ ही लिया, क्युं भाई किस लिये हसी आ रही है?

टी.वी. पे एड देखा तो होगा ना पता भी होगा ये किसलिये उपयोग में आता है ! या कहो तो बताऊ, तुम्हारे घर की औरतें भी हर महीने इसे ही उपयोग में लाती होगी, तब भी ऐसे ही हसी आती होगी ना ! बस

इतना सुनकर दोनो ने सिर झुकाया और बोले – सौरी दीदी !

उस दिन का दिन है और आज का बहुत तमीज़ से बोलते हैं, वो दोनो ! मुझे समझ नहीं आता, एक पुरुष अपने ही अस्तित्व से जुडी बात पर हंस केसे सकता है ?

इस सोच पर, कैसे हैरानी ना जताऊं? कैसे समझाऊं कि आज जो खून , मैं पेड या नालियों में बहाती हूं, उसी मांस-खून से कभी, तुम लोगो को दुनिया में लाने के लिए, ‘कच्चा माल’ जुटाती हूं। औरत के गर्भ में बच्चे के विकास का एकमात्र साधन यही रक्त है ! मैं वही हूँ जो तुम्हारा अस्तित्व तुम्हें देती हूँ, मैं वही हूँ जिसकी बदौलत तुम दुनिया में हो!

कहते हैं तकलीफ़ उसे ही समझ आती है, जिसे होती है ! और ये बात बिल्कुल सही है, मर्द क्या जाने हर महीने किस हद तक दर्द झेल्ती हैं औरतें ! लेकिन शर्म के कारण चुप रह जाती हैं ! दुनिया में सारी औरतें, अपनी आधे से जायदा जिन्द्गी इसी दर्द से गुजर्ते हुए बिताती हैं !

#जयति जैन (नूतन)

परिचय: जयति जैन (नूतन) की जन्मतिथि-१ जनवरी १९९२ तथा जन्म स्थान-रानीपुर(झांसी-उ.प्र.) हैl आपकी शिक्षा-डी.फार्मा,बी.फार्मा और एम.फार्मा है,इसलिए फार्मासिस्ट का कार्यक्षेत्र हैl साथ ही लेखन में भी सक्रिय हैंl उत्तर प्रदेशके रानीपुर(झांसी) में ही आपका निवास हैl लेख,कविता,दोहे एवं कहानी लिखती हैं तो ब्लॉग पर भी बात रखती हैंl सामाज़िक मुद्दों पर दैनिक-साप्ताहिक अखबारों के साथ ही ई-वेबसाइट पर भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl सम्मान के रुप में आपको रचनाकार प्रोत्साहन योजना के अन्तर्गत `श्रेष्ठ नवोदित रचनाकार` से समानित किया गया हैl अपनी बेबाकी व स्वतंत्र लेखन(३०० से ज्यादा प्रकाशन)को ही आप उपलब्धि मानती हैंl लेखन का उद्देश्य-समाज में सकारात्मक बदलाव लाना हैl

Arpan Jain

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