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मैं कहीं भी रहूं दर्द रहता मुझे,
रो पड़ूँगा अभी ऐसा लगता मुझे।
झेलते-झेलते मिट गई जिंदगी,
वह कहां तक भला याद रखता मुझे।
साथ देता बहुत मेरी तकलीफ में,
आज यदि प्यार से कोई सुनता मुझे।
सिर्फ मतलब में आवाज देते सभी,
वर्ना अपना यहां कौन कहता मुझे।
शर्त है पारितोषिक मैं दूंगा उसे,
जिसने देखा है सचमुच में हंसता मुझे।
मुआयना मैंने जब-जब किया रात का,
खिड़कियों में मिला चांद जगता मुझे॥
#डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी ‘नीरव’
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