हार-जीत

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kapil shastri
सिर के पीछे पड़ी हलकी-सी चपत से ही इस युद्ध का शंखनाद हो चुका थाl तकियों को अस्त्र-शस्त्र की तरह इस्तेमाल करने के बाद बात मल्लयुद्ध तक आ पहुंची थी।
`आज तो तेरी ईंट-से-ईंट बजा दूंगाl` विकास उसकी आँखों में देखकर गुर्राया।
मैं भी पापा आज आपको नहीं छोडूंगी।`
पलंग के ऊपर बाप बेटी सांड की तरह भिड़े हुए थे। इस युद्ध के लिए पापा ने ही अपनी पांच वर्षीय बेटी अंजलि को ललकारा था और घुटनों के बल आकर बेटी की ऊंचाई की बराबरी कर ली थी।
किसी मिटटी पकड़ पहलवान की तरह दोनों के पंजे और सिर आपस में भिड़े हुए थे। फिर पापा ने एहतियात से बेटी को उठाकर नरम गद्दे पर पटक दियाl इससे वो और उग्र हो गई और उठकर ताबड़-तोड़ मुक्के बरसाने लगी,जिससे बचते हुए पापा ने भी पुरानी मारधाड़ से भरपूर महान पारिवारिक चित्रों के नायकों की तरह मुँह से ढिशूम-ढिशूम की आवाज़ निकाली और तीन-चार मुक्के उसकी बगल से निकाले। बच्ची भी कहाँ हार मानने वाली थी,उसने तीन-चार असली के जड़ दिए और वो पापा के सीने पर चढ़ गई,और चित करके ही दम लिया। इतने में ही पत्नी शालिनी ने आकर जब देखा कि,करीने से चढ़ाए गए गिलाफ तकियों से विमुख हो अचेतावस्था में पड़े हैं तो तमतमा गई। दोनों को अलग किया और बिफर कर बोली-`ये क्या पागलपन मचा रखा है बाप-बेटी ने घर में!` फिर बेटी को बाहर जाकर खेलने की हिदायत दी। उसने मम्मी को गर्व से बताया कि-`मैंने पापा को हरा दिया`,और विजयी मुद्रा में प्रस्थान किया।
`इस पागलपंती में दुनियादारी के सारे तनाव भूल जाता हूँ।` विकास ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा।
`ये छंटाक भरी,तुम्हें पीट-पाटकर चली जाती है और तुम कुछ नहीं कर पाते!` पत्नी ने आश्चर्य व्यक्त किया। विकास ने भी उसकी ठुड्डी पकड़कर कहा-`ये तुम्हारी शक्ल की है न,इसलिए बच जाती है।` ये सुनकर शालिनी मुस्कुरा उठी और पूछा-`क्या तुम भी अपने पापा से इतने ही फ्रेंडली थे?` इस बात पर उसके चहरे पर उदासी छा गई और बोला-`नहीं था,वो मुझसे मन से प्यार तो करते थे पर कभी इज़हार नहीं किया,मैं भी उनके गुस्से के डर से दूर-दूर छिटका,छिटका ही रहताl मैं भी चाहता था कि मेरे पिता मेरे दोस्त जैसे होते।` कहकर विकास ने एक ठंडी सांस छोड़ी।

                                                                  #कपिल शास्त्री

परिचय : 2004 से वर्तमान तक मेडिकल के व्यापारी कपिल शास्त्री भोपाल में बसे हुए हैं। आपका जन्म 1965 में  भोपाल में ही हुआ है। बीएससी और एमएससी(एप्लाइड जियोलॉजी) की शिक्षा हासिल कर चुके श्री शास्त्री लेखन विधा में लघुकथा का शौक रखते हैं। प्रकाशित कृतियों में लघुकथा संकलन ‘बूँद -बूँद सागर’ सहित ४ लघुकथाएँ-इन्द्रधनुष,ठेला, बंद,रक्षा,कवर हैं। द्वितीय लघुकथा भी प्रकाशित हो गया है। लघुकथा के रुप में आपकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित होती हैं।

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