सँभल के चल

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prabhat dube
ओ मुसाफिर सँभल के चल,
पीछे लग रही धूल है
रास्ते में सब है अपना,
ये तुम्हारी भूल है।
जिसको तूने अपना,
छोड़ा बीच राह पे
भूल बैठा तुम यहाँ पे,
तुम तो हो एक अजनबी।
ओ मुसाफिर…॥
अपने पे विश्वास रखो तुम,
मंजिल न अब तेरी दूर है
इस डगर पे जिसको अपना समझा,
वही तो बईमान है..
इनके पास तो तेरे लिए,
थोड़ा भी न ईमान है।
ओ मुसाफिर सँभल के चल,
पीछे लग रही धूल है..
रास्ते में सब है अपना,
ये तुम्हारी भूल है।
                                                 #प्रभात कुमार दुबे 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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