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अच्छे दिनों वाली कहानी नहीं है
बेरोजगारी में आमदानी नहीं है
जुमले के सिवा यहाँ मिला क्या है
कैसे न कहें कि मनमानी नहीं है
विकास तो कागजों में नजर आया
सच यही सड़क नहीं तो पानी नहीं है
तड़प इतनी भूख से मर रहा कोई
सुध नहीं,किसी की मेहरबानी नहीं है
फटे हाल जीने पर मजबूर है आदमी
सुबह न तो कोई शाम सुहानी नहीं है
किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट
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