फौजी बेटे के लिए माँ की चिठ्ठी 

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garima sinh
बचपन में तू  शोर शराबे से कितना घबराता था
गर थोड़ा सा मैं ना दिखूँ  तो तू कितना डर जाता था ॥
दिवाली पर फुलझड़ियों की चिंगारी दिख जाए तो
तेज पटाखे के शोर से भाग के घर में आता था ॥
अब गोली बारूदो की आवाज़े कैसे तू सह जाता है
माँ के बिन अब वहाँ अकेले कैसे तू रह जाता है ॥
याद तुझे है क्या बेटा जब तू स्कूल को जाता था
देर जरा सी गर हो जाए मन मेरा डर जाता था ॥
भूल गया क्या तू जब , जब तुझको ठोकर भी लग जाती थी
दर्द भले तुझको होता था आँख मेरी भर जाती थी ॥
तुझे चोट गर लगे  कभी और मुँह से आह निकल आती थी
फिर दुनियाँ चाहे कुछ बोले मैं दुनियाँ से लड़ जाती थी ॥
जब तक तेरे सर पर मेरे ममता का छाया था
कभी कोई दुख लाल मेरे ना तुझको छु भी पाया था ॥
दिन भर थक कर लाल मेरे जब तू घर को आता था
मेरी गोदी में सर रखकर चैन से तू सो जाता था ॥
मेरी ममता के साये में तूने दुनियाँ देखी है
मेरे लाल तू अमर रहे बस माँ ये दुवाएं देती है ॥
फिकर में तेरी भूख प्यास अब मुझको भी नही लगती है
जल्दी आना लाल मेरे ये बूढ़ी आँखे तेरा रस्ता तकती हैं ॥
बाकी सब  कुशल यहाँ है और  वहाँ  तुम कुशल ही रहना
जल्दी आना राजा भईया बोल रही है तेरी बहना ॥
ये गाँव ये चौबारे सब खाली , खाली लगते हैं
     तेरे सारे संगी साथी रस्ता तेरा तकते हैं ॥
तेरे बिन अब त्यौहारों में ना कोई धूम मचाता है
घर की चौखट से आँगन तक तेरी याद दिलाता है ॥
बाग़ बग़ीचे खेत खलिहान सूना सारा गाँव सीवान
 तेरे बिन अब सुने सुने से लगते हैं ये खेत खलिहान ॥
अब  अमराइयों में कोयल भी देशप्रेम ही गाती है
फूलों पर मंडराती तितली रक्षा का मार्ग दिखाती है॥
तू भी सबको याद है करता या फिर भूल गया है गाँव
  वो गाँव की कच्ची  सड़कें और पीपल की ठंडी छाँव ॥
अच्छा छोड़ो बहुत हुआ अब घर गाँव और खेत सेवार
         पापा तेरे भेज रहे हैं लल्ला तुझको ढेरों प्यार ॥
आगे लिखना मुश्किल है अब कलम नही चल पायेगी
     जितना तुझको सोचूँगी बेटा,  यादें उतना तड़पायेगी ॥
हुआ बहुत अब कुशल क्षेम अपना हाल भी भिजवाना
         बेहतर होगा पहली छुट्टी मिलते ही घर आ जाना  ॥
                         तेरी
                              (माँ )
#गरिमा सिंह
परिचय- 
नाम-  गरिमा अनिरुद्ध सिंह
साहित्यिक उपनाम-मधुरिमा
राज्य-गुजरात
शहर-सूरत
शिक्षा- एम ए प्राचीन इतिहास
कार्यक्षेत्र-शिक्षण
विधा – हास्य ,वीर रस ,शृंगार

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।