हाँ में दीमक हूँ, घर दिवारों पर खिड़कियों पर, किताबों में पुरानी समानों पर मिट्टी के अन्दर अपना रैनबसरे बना लेती हूँ, धीरे-धीरे फैलती जाती हूँ जैसे बरगद की लताएं हों। मैं कहीं भी जाऊँ, अपना स्थान घेर लेती हूँ या यूँ कहें एक सुरक्षित दायरा बना लेती हूँ, मैं […]