आज देखी है मैंने जल की तृष्णा, बड़ी भयंकर,वीभत्स,अनोखी-सी। अजस्र नरों का रक्त पीकर इठलाती चल दी भूखी-सी। अपना बहाव बदलकर आई है जन-मानस के जंगल में, बस जीत रही है आज अकेले प्रकृति-मानव के दंगल में। पर बुरा भी क्यों मानूं मैं उसको,जब उसे हमने ही हड़काया है, अपने […]