यदि दुख में दिखता कोई भी,
उसके दुःख से भर जाता।
देख दूसरे की सुख-सुविधा,
अनायास ही सुख पाता।
देख सका कवि कहो भला कब,
किसी व्यक्ति की भी पीड़ा।
औरों की व्यथा लिखा करता,
जन बीच उसी को गाता।
कितना हो मीठा फल लेकिन,
उसको वह वृक्ष न खाता।
देता है सबको छाँव और,
अपने को नित्य तपाता।
मृत्यु हुई तो अपना सब कुछ,
औरों को ही दे जाता,
कुछ इन्हीं गुणों से सना हुआ,
मानव ही कवि कहलाता।
जनमानस का सोता अंतस,
गा-गाकर गीत जगाता।
वह राष्ट्र हेतु कर्त्तव्यों का,
जन-जन को बोध कराता।
अनुचित होने पर बिना डरे,
करता नृप की भी निंदा।
ऐसा शब्दों का साधक ही,
जन बीच सुकवि कहलाता।
#मुकेश कुमार मिश्र
परिचय: मुकेश कुमार मिश्र की जन्म तिथि २० अगस्त १९८७ तथा जन्म स्थान ग्राम व पत्रालय रामापुर थाना कौडिया बाजार(जनपद गोण्डा,उत्तर प्रदेश) हैl थाना गाजीपुर के तहत ब्रह्मपुरी कालोनी में आपका बसेरा हैl आपकी शैक्षणिक योग्यता भौतिकी में परास्नातक तथा संप्रति-उत्तर प्रदेश सरकार के गृह विभाग के अधीन कार्य की है। इस क्षेत्र के करीब सभी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। एक साझा संकलन `श्रृंगिनी` का लोकार्पण शीघ्र होने वाला है l