पिता चालीसा

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rajendra anekant
दोहा
पुरूष पिता राजा बनें,
परम पिता परमेश।
पुरुष सृजन सृष्टि करें
नशते सभी क्लेश।।
   पिता-चालीसा
   (चौपाई छंद)
             १
पिता रुप मे महिमा भारी।
निशदिन गाती सृष्टि सारी।।
                 २
परम पिता परमेश्वर कहते।
सबके सब दुख संकट हरते।।
                  ३
माँ की छाती तभी फूलती।
आँखों मे तस्वीर झूलती।।
                  ४
गौरव पथ पर पिता चलें जब।
निज कुल रोशन सदा करे तब।।
                    ५
परम बृह्म भी पिता कहाते।
सुंदर सृष्टि सृजन कराते।।
                   ६
ऋषि कृषि की नीति बताकर।
भारत को सम्पन्न बनाकर।।
                 ७
पिता वही जो धीरज रखते।
पिता वही जो नीरज बनते।।
                  ८
पिता वही जो शिव रथ चड़ते।
पिता तभी तो तीरथ बनते।।
                   ९
पिता पिता कह कभी न थकते।
ऋषिजन मुनिजन महिमा रचते।।
                  १०
जीवन भर कर्तव्य निभाते।
पिता तभी तो पिता कहाते।।
               ११
भारत महिमा सुनिए भाई।
अंतरमन से गुनिए भाई।।
               १२
संबन्धों से प्रीत बनाई।
उनमे पिता की महिमा गाई।।
              १३
क्योंकि पिता ही धुरी मानिए।
परिवार  स्वर्ग पुरी जानिए।।
              १४
नारी माँ तब ही तो होती।
पिता संगनी जब वो होती।।
                १५
अतुलित वल धारी बन जाती।
पिता की शक्ति जब वो पाती।।
                 १६
भारत की नारी शक्ती मे।
ईश्वर की सच्ची भक्ति मे।।
                 १८
पिता पितामह साथ निभाते।
प्रभु चरणों मे माँथ नमाते।।
                १९
अन्न प्रदाता पिता कहाते।
कृषक रुप कर्तव्य निभाते।।
                २०
पशु पालन भी पिता ही करते।
तब ही हम निज पालन करते।।
                  २१
व्यापार सदा से होता आया।
पिता ही ने यह भार उठाया।।
                  २२
जीवन यापन तभी तो होता।
वरना बोलो फिर क्या होता।।
                 २३
क्षात्र धर्म भी वही निभाते।
दुश्मन से रक्षित करवाते।।
               २४
जननी भले ही साथ निभाए।
किन्तु उन्हीं से गौरव पाए।।
                २५
आज जगत मे होड़ लगी है।
कैसी अंधी दौड़ लगी है।।
            २६
नारी नर बन दौड़ रही है।
सारी सीमा तोड़ रही है।।
               २७
माँ सा पावन मंगल रिस्ता।
मीठा दुर्लभ उत्तम पिस्ता।।
               २८
किन्तु मिठास  तभी यह होगी।
जब माँ सीमा पार न होगी।।
              २९
अतः पिता बस पिता रहेंगे।
अपने कारज वही करेंगें।।
               ३०
किन्तु सभी माताएँ जाने।
अपनी महिमा खुद पहचाने।।
              ३१
पिता उच्च पद तब धरते है।
माँ को आगे जब करते हैं।।
              ३२
मात पिता पूरक ही जानों।
कोई किसी से कम न मानों।।
    .          ३३
पुरुष प्रधाना देश हमारा।
किन्तु नाम माँ धर संसारा।।
               ३४
पिता नयन तो कभी न झुकते।
पिता नयन बस इकटक रुकते।।
               ३५
पिता नयन जब रक्तिम होते।
पुत्र अधमता पर तब झुकते।।
                ३६
पुत्र पिता महिमा पहचाने
पुत्र पिता अंतर मन जाने
              ३७
पिता पुत्र के संवल होते
पिता बिना बस निर्वल होते
              ३८
पिता बिना सब दूर भागते।
रिस्ते नाते सभी त्यागते।।
             ३९
पुत्र पिता संबंन्ध बचेंगे।
सबके दिल मे तभी रचेंगे।।
              ४०
‘अनेकांत’कवि चरण पखारें।
भाग्य विधाता पिता सँवारें।।
                 दोहा
    जीवन  की आशा पिता,
    जीवन पथ निर्माण।
    पिता चरण रज माँथ रख,
    तब ही बस कल्याण।।
परिचय:
नाम-राजेन्द्र जैन’अनेकांत’
शिक्षा-ड्राप्ट्समेन(नाग.)
          एम.ए(दर्शन)
         जैनधर्म विशारद
कार्यक्षेत्र -सहा.मानचित्रकार
                 राजीव सागर परियोजना जल संसाधन विभाग क्र.3 कटंगी जि. बालाघाट(म.प्र.)
सामाजिक क्षेत्र-सक्रिय भूमिका
विधा-छंद बद्ध एवं छद मुक्त 
रचना लेखन 
प्रकाशन १-माँ(१००८ पंक्ति की रचना)
२-पर्यावरण सुधार दोहा शतक
३-आद्याक्षरांजलि(२४तीर्थकर भगवंतो के २४ दोहाष्टक उनके नामाक्षर से सभी पंक्तिया प्रारंभ)
४-देख पपीहा आसमाँ(माँ पर दोहा शतक
सम्मान-अनेक
अन्य उपलब्धियाँ-संतो का आशीर्वाद
लेखन का उद्येश-आत्म ए के साथ साथ लोकोपकार का भाव

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