रूप ,कुरूप ,
सब मन का वहम ।
इश्क हो , अगर सच्चा ,
तब हो जाते , रिश्ते अहम ।।
रूप अच्छा होने से ,
सब कुछ , हासिल नहीं होता ।
रूप सलौना है , तोते का ,
फिर भी ,
कोयल सा गान , उससे नहीं होता ।।
कितने भी हो , कुरूप बच्चे ,
माँ-बाप के लिए , खूबसूरत होते है ।
रूपवान भले ना हो , माँ-बाप ,
फिर भी, बच्चों के लिए ,
भगवान की मूरत होते है ।।
रूप भले हो , अप्सरा जैसा ,
संस्कार विहीन हो फिर ,
जीवन कैसा ।
संस्कारित हो , भले कुरूप पत्नी ,
घर बन जाता , जन्नत जैसा ।।
आज की आधुनिकता , में भी ,
ऐसी बेहूदी सोच ,
तुम रखोगे ।
सबको समानता का , हक दो ,
फिर ही जीवन का असली रस ,
तुम चखोगे ।।
भगवान सबको ,
एक जैसा बनाता है ,
फिर भी ,
मानव भेदभाव कर जाता है ।
अरे ! रूप और कुरूप तो ,
सब है , कुदरत की माया ,
ये तो , अपनी सोच दर्शाता है ।।
“जसवंत” कहे सुधारों सोच ,
क्यों , ऐसी हरकत कर जाते हो ।
अरे ! कुरूपता तो ,
तुम्हारी सोच में है ,
तुम क्यों , समाज में
अंधकार फैलाते हो ।।
नाम – जसवंत लाल बोलीवाल ( खटीक )
पिताजी का नाम – श्री लालूराम जी खटीक ( व.अ.)
माता जी का नाम – श्रीमती मांगी देवी
धर्मपत्नी – पूजा कुमारी खटीक ( अध्यापिका )
शिक्षा – B.tech in Computer Science
व्यवसाय – मातेश्वरी किराणा स्टोर , रतना का गुड़ा
राजसमन्द ( राज .)