जिंदगी तू मेरी गजल और मैं तेरा गीत बन जाऊँ,
भा जाए जो तुझे, प्यासे मन का मीत बन जाऊँ।
आती रहे सदाएं, यूँ ही बार-बार नजारे बनकर,
नज्मों की कुछ किताब में बहार-ए- जीत बन जाऊँ।
रहा जाए तुझमें,हर पल बजते हुए किसी साज में,
सदाबहार गीतों की कसम, ऐसा संगीत बन जाऊँ।
एक तरफ है आसमां, और एक तरफ है ये जमीं,
इन दोनों के बीच सदा के लिए अतीत बन जाऊँ।
भुला सकता है तुझे, हर कोई अपना और पराया,
तो क्यों न इक तेरे लिए तन्हाई में प्रीत बन जाऊँ।
नहीं रहेगा,आज और कल में कोई तेरे खातिर,
रहे जो सदा मगन खुद में, ऐसी रीत बन जाऊँ।।
#मनीष कुमार ‘मुसाफिर’
परिचय : युवा कवि और लेखक के रुप में मनीष कुमार ‘मुसाफिर’ मध्यप्रदेश के महेश्वर (ईटावदी,जिला खरगोन) में बसते हैं।आप खास तौर से ग़ज़ल की रचना करते हैं।