सौ अरमान देखे,तब जाकर एक अरमान मिला,
उम्मीदों की कश्ती में बहकर वो फरमान मिला।
अब क्या घबराना ऐसे इन आंधी और तुफानों से,
मौत भी आ जाए तो पलटकर वो जंहान मिला।
उम्मीदों का सफर फिर उन्हीं रास्तों पर ले चला,
कयामत से गुजरकर तकदीर को, वो ईमान मिला।
छोड़ के दुनिया की प्रीत अपनी प्रीत पराई हो गई,
मन को मंदिर समझकर ऐसा वो भगवान मिला।
बदलते आए होंगे,आते-जाते जिंदगी के ये रास्ते,
उन्हीं रास्तों से बिछड़कर लम्हा वो अंजान मिला।
बदल देना तुम भी यारों,अपनी जिंदगी के ये रास्ते,
मुसाफिर को चलकर आखिर वो श्मशान मिला।
#मनीष कुमार ‘मुसाफिर’
परिचय : युवा कवि और लेखक के रुप में मनीष कुमार ‘मुसाफिर’ मध्यप्रदेश के महेश्वर (ईटावदी,जिला खरगोन) में बसते हैं।आप खास तौर से ग़ज़ल की रचना करते हैं।