मैंने खुदा को देखा है..
कभी रोटी बेलते हुए,
कभी रोटी सेंकते हुए,
कभी हल-बैल के साथ दौड़ते हुए।
मैंने खुदा को देखा है,
सिर पर थोड़ी-सी धूप लिए..
और माटी में अपनी खोई हुई,
तक़दीर को खोजते हुए।
मैंने खुदा को देखा है,
कभी प्यासे होंठ लिए..
आँखों से पानी खोजते हुए,
मैंने कल ही खुदा को देखा है।
थोड़ा-सा थके हुए,
कुछ कमर से झुके हुए..
अपने बच्चों के लिए
तालीम से रंगा हुआ
एक रास्ता बनाते हुए।
मैंने खुदा को देखा है,
मस्जिद से दूर..
पत्थर की शिलाओं पर,
कुरान की आयतों को तराशते हुए।
हाँ,मैंने कल ही खुदा को देखा है,
साहूकार से कर्ज़ लेकर..
अपनी लड़की के लिए
दहेज़ जुटाते हुए,
हाँ,मैंने खुदा को देखा है।
#नीतीश मिश्र
परिचय : १ मार्च १९८२ को बनारस में जन्में, प्रारंभिक शिक्षा ग्राम पहाड़ीपुर, जिला मउ( उत्तरप्रदेश ) से हासिल कर बी.ए. ( लखनउ विश्वविधयालय) और एम ए ( हिन्दी साहित्य में इलाहबाद विश्वविधयालय)किया | कविता के क्षेत्र में सामाजिक, राजनीतिक, व्यवस्था को विकल्प देती कविताए लिखने के लिए प्रसिद्ध है मिश्रा| अपने समय को विकल्प देने की और व्यवस्था से जूझने की ताक़त नीतीश मिश्र के शब्दों मे दिखाई देती है और उस आदम की बात करते है जिसको व्यवस्था भूल चुकी हैं | देश की राजधानी दिल्ली में रहकर भी मिश्र ने अपनी कविताओ को रंग दिया | विगत 5 वर्षो से इंदौर (मध्यप्रदेश ) में दैनिक अख़बार में रह कर पत्रकारिता कर रहे है | नीतीश मिश्रा के जीवन के आँगन का प्रथम केंद्र इलाहबाद है तो दूसरा केंद्र इंदौर | इंदौर की मिट्टी का मिश्रा अपने व्यक्तित्व में बार-बार अतिक्रमण करते हैं | जो संघर्ष हिन्दी जगत के मूर्धन्य कवि ‘मुक्तिबोध’ ने मालवा की धरती पर रहते हुए किया था ठीक उसी तरह का ताना-बाना मालवा ने नीतीश मिश्रा की आत्मा में उकेरा है |
बढ़िया कविता है नीतीश