टूट रहे हैं पुल हर जगह
गिर रहा है इन्सान
दौलत जीत रही है अब तो
आदमी बन रहा हैवान..
चंद सिक्कों की खातिर सब
तुले हैं बेचने पर ईमान
समर्थ लगे हैं लूटपाट में
जनता हो रही परेशान..
चल पड़ा है अजीब सा अब
दौर हर दिन के हादसों का
कोई समाचार-पत्र देख लो
कल का हो या परसों का..
मामला किसी शहर का हो
या फिर हो अपने सरहद का
छोटा हो रहा है जमीर
हर आदमियत के कद का..
पुल सिर्फ सड़कों के ही नहीं
दिलों के भी हैं गिर रहे
भले अंतरिक्ष का स्वप्न संजो रहे
पर अनैतिकता से घिर रहे..
दो पीढ़ी के बीच समाज मेंं
नैतिकता के पुल टूट रहे
आजादी के नाम पर हम
अपनी संस्कृति से ही छूट रहे..
पुल टूटें जब सड़कों पर
आहतों पर धन-वर्षा कर दें
चार दिन चीखेगी मीडिया
घरों में हम चर्चा कर लें..
कैंडल, धरना, मार्च, नेतागण
थोड़े दिन सभी फिक्र कर लेंगे
फिर सब सामान्य पहले सा
सभी जख्मी दिल सब्र कर लेंगे..
कुछ दिन चलेगी वार्ता खोखली
पुनः होगा कोई नया हादसा
दौड़ पड़ेगी मीडिया फिर से
छोटी के आगे बड़ी लाइन-सा..
ऐसे कब तक चलेगा भला?
कब तक जिम्मेदारी से भागेंगे?
जनता-सरकार, सरकार-जनता
कब अपने कर्तव्य में जागेंगे?..
एक सिक्के के दो पहलू हैं
अधिकार है तो कर्तव्य भी है
गर नैतिक मूल्य और ईमानदारी है
तब सुखद फल तो तय ही है..
सब कुछ तो अपना ही है न
देश हमारा, लोग हमारे
क्यों न हम झकझोरें खुद को
क्यों न सँभल जायें हम सारे..
#अर्चना अनुप्रिया
परिचय :
नाम-अर्चना अनुप्रिया
जन्म-पटना, बिहार
पता- नयी दिल्ली
शिक्षा-एम.ए.;एल.एल.एम.;पी.जी.डी.बी.एम.;फैशन डिजाइनिंग
व्यवसाय-अधिवक्ता एवं शिक्षिका
विशेष-क)पेशे से वकील होते हुए भी साहित्य में खास रुचिख) महिलाओं तथा जरूरतमंदों के अधिकारों के लिए प्रयासरत
ग) पत्र-पत्रिकाओं में यदा कदा रचनाओं का प्रकाशन
घ) आकाशवाणी में साहित्यिक वार्ता
सम्प्रति-स्वतंत्र लेखन एवं समाज सेवा