कविता- माँ

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माँ से ही तो हैं हम, माँ पर क्या लिखना।
जगत जननी, जग पालक, माँ पर क्या लिखना।।
तवे पे पकती रोटी माँ, सबसे बड़ी मनौती माँ।
सारे दुख दर्दों को हर ले, वो है बस इकलौती माँ।।
वही तो चारों धाम है, माँ पर क्या लिखना।
जगत जननी, जग पालक…

ज़ख्मों पर मरहम जैसी, खट्टे-मीठे संगम जैसी।
भरी दुपहरी तपिश दंश में, तरूवर छाँव सुगम जैसी।।
पतझड़ में सावन है, माँ पर क्या लिखना।
जगत जननी, जग पालक…

पथरीली राहों पर, पांव में चप्पल जैसी।
जीवन समर में, कवच और कुंडल जैसी।।
ख़ुशियों का शंखनाद है, माँ पर क्या लिखना।
जगत जननी, जग पालक…

नए वस्त्र की रंगत है और, फटे की है तुरपाई माँ।
जब भी चोट लगी मुझको, आँखें जिसकी भर आईं, माँ।।
हर इक मर्ज़ की दवा है, माँ पर क्या लिखना।
जगत जननी, जग पालक…

दही-चीनी से विदा है करती, इम्तिहान के डर को हरती।
हार-जीत की सबको चिन्ता, वो हर हाल में लाड़ है करती।।
जीवन में जो भी खाली है, वो हर उस स्थान को भरती।
अलादीन का जिन्न है, माँ पर क्या लिखना।।
जगत जननी, जग पालक….

सुरेश सिंह,

जांजगीर-चांपा, छत्तीसगढ़

परिचय-
नाम- सुरेश सिंह
साहित्यिक उपनाम- सुरेश
जन्मतिथि- २५.१२.१९६९
राज्य- छत्तीसगढ़
शहर- जांजगीर-चांपा
शिक्षा- बी. ई. सिविल
कार्यक्षेत्र- रेलवे
विधा – ग़ज़ल
प्रकाशन- ग़ज़ल संग्रह “आगाज़”
सम्मान- कोई नहीं
ब्लॉग- कोई नहीं
अन्य उपलब्धियाँ- पत्र-पत्रिकाओं में ग़ज़ल, कविताएँ प्रकाशित
लेखन का उद्देश्य- शौक

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