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झूमि-झूमि-झूमि कारी-कारी कजरारी घटा,
बूँद – बूँद डारि हिय आगि धरने लगी।
दादुर, मयूर-धुनि सुनि-सुनि हाय राम,
प्रेम नगरी की गली-गली जरने लगी।।
मैं तो रही भोरी, ये अनंग बरजोरी देखु,
धीरे – धीरे सारी कुलकानि हरने लगी।
पपीहा की पीउ – पीउ, पीउ की पुकार सुनि,
मोरे अंग – अंग “मृदु “पीर भरने लगी।।
डा0 मृदुला शुक्ला “मृदु “
लखीमपुर – खीरी
(उत्तर प्रदेश)
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