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जीत की ही राह चली न हारती रही
शान है वो हिन्द की भारती रहीं
शक्ति के रूप में देखा है सभी ने
मुश्किलों में दिन भी वो गुजारती रहीं
माँ का वो बहन का वो भगवान रूप है
होती रहीं पूजा कभी ,आरती रहीं
बच्चों को पढ़ाया और सम्मान दे दिया
नज़र जो लगी तो कभी उतारती रहीं
रानी बनी कभी तो कभी अवंति बनी
दुश्मनों को देखो अपने सदा मारती रहीं
अबला न समझ नारी है आज की
परिवार को सदा वो अपने तारती रहीं
-किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट
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