रिवाज़ सा हो गया है आजकल
बात- बेबात पर नाराज रहने का।
यह नाराजगी होती है ,
कभी अच्छी तो
कभी देती है पीड़ा अधिक
पर मैं इसे हमेशा सुखद ही
मानता हूँ ।
चलता है इससे मन में
रूठने और मनाने का द्वंद
जो उपजाता है -अंततः करुणा
परिणित होना ही होता है जिसे
फिर आनन्ददायी प्रेम में।
रहती है जब तक यह
सीमा में अपनी
देती है सीख कई , नयी-नयी
पर तोड़े जब यह मर्यादा
मिलती है फिर पीड़ा घनी।
चुनना हमको ही है , इनमें से
नाराजगी का कोई एक – रूप
सुख से रहना है या
रहना है फिर दुखी सदा ।
अटल सत्य है यह तो
रहना है ज़िंदा जब तक
छूट सकती नही हमारे
स्वभाव से नाराजगी ।
होती है यह ज्यादा कभी तो
खुद ही हो भी जाती है कम
समझ लें इसको थोड़ा सा
और खुशहाल रहें हरदम।
#देवेंन्द्र सोनी, इटारसी