ज़ख्मों को मेरे जैसे दवा लगी है,
मैं शायर नहीं मगर हवा लगी है।
क्या दस्तूर हो गया मेरे शहर का साहिल,
कीमती लिबासों में भी नंगी है लड़कियाँ।
मुझे जन्नत वाजिब हो गई यकीनन,
मैं माँ को कभी रूठने नहीं देता।
यूँ मुन्तसिर हो के कुछ हासिल न हुआ साहिल,
आओ मुत्तहिद होके बदलें निजामे आलम।
बढ़ा रखी है फिरकापरस्ती ने अदावतें,
मैं मुसलमां होकर मुसलमां से डरता हूँ।
ये सियासतें हैं इनका कोई दीन-ओ-इमां नहीं होता,
झोपड़ियाँ वहाँ भी जलती है जहाँ मुसलमां नहीं होता।
कहीं हिंदू,कहीं सिख,कहीं मुसलमान रहता है,
मेरे मुल्क़ में अब कहाँ इंसान रहता है।
मेरे क़दम यूँ ही लड़खड़ा जाते हैं बेबसी में,
लोग समझते हैं साहिल रोज पीकर आता है।
जब भी मेरी तबियत नाजुक होती है,
माँ सजदे में रोती बहुत है।
हम लड़ रहे हैं मंदिर-मस्जिद को लेकर साहिल,
यहाँ खून की नदियां बहाकर इबादत की जाती है॥
यूसुफ खान साहिल
परिचय : यूसुफ अली का साहित्यिक उपनाम-साहिल है। आपकी जन्मतिथि २२ दिसम्बर १९८९ और जन्म स्थान नोहर है। आपका वर्तमान एवं स्थाई पता नोहर,जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान)है। राजस्थान के यूसुफ अली ने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्यक्षेत्र अध्ययन तथा साहित्य लेखन है। विभिन्न संस्थाओं से संबंध रखते हुए आप सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी करते हैं। आपकी लेखन विधा-ग़ज़ल, कविता,गीत,कहानी तथा लेख आदि है।’ग़म की धूप(ग़जल संग्रह)’ और ‘ग़म की धूप में झुलसते लोग(कहानी संग्रह)’ आपकी प्रकाशित किताब है। रचनाओं का प्रकाशन साहित्यिक मासिक पत्र-पत्रिकाओं में भी हुआ है। साहिल को १२ से अधिक राष्ट्रीय, राज्य,जिला एवं स्थानीय स्तर पर सम्मान मिले हैं। आपकी कमजोरी ९० प्रतिशत दिव्यांगता है,पर इसे लेखनी से भुला रखा है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन से समाज में बदलाव लाना है। वर्तमान में सिनेमा जगत में गीतकार की भूमिका निभा रहे हैं।