अजीब सी बेचैनी बढ़ती चली जा रही थी , कई बार उठकर कई गिलास पानी पीने के बाद भी आग्रह को शांति नहीं मिल रही थी , एक तो गर्मी ऊपर से मेवा का अपने मायके चला जाना ! जब तक कोई जिंदगी में ना आये तब तक हर छोटी बड़ी परेशानी और चीजे हम संभाल लेते हैं लेकिन एक बार घर और दिल की जिम्मेदारी किसी को सौंप दो तो हर छोटी छोटी चीजों में उसी का ध्यान आता है ! रात के सवा दो बज रहे थे, खुली हवा में छत पर टहलने के बाद भी आग्रह का मन शांत नहीं हो रहा था ! बार बार मेवा का ध्यान आता रहा और वो सुबह का इंतज़ार करने लगा , एक एक मिनट घंटों की तरह गुजर रहा था !
आग्रह को अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि मेवा अपनी नयी नौकरी की वजह से मुझे समय नहीं दे पा रही थी, मुझे समझना चाहिए था कि जिस तरह में थक जाता हूँ काम से वह भी तो इंसान ही है, एक फिल्म और डिनर ना साथ कर पाने के लिए मैंने उससे रिश्ता तोड़ने की बात कह दी , अलग रहने का फैसला कर लिया , कैसे ? क्यों नहीं रोका उसे मायके जाने से ? ठीक तो है वो आखिर कहा पहुंची , परेशान तो नहीं हुई ? सवाल सैकड़ों मन में हलचल पैदा कर रहे थे !
जब छत पर टहलते टहलते आग्रह थक गया तो वह छत के एक कोने में बैठ गया, अचानक उसे मेवा की कही हुई बात याद आयी कि अगर कभी मैं बेइज़्ज़त होकर इस घर से निकली तो कभी अपने माँ बाप के यहाँ नहीं जाऊगी भले मर क्यों ना जाऊं ! हालांकि ये बात दोनों के बीच कई महीने पहले हुई थी, जब दोनों आराम से थे जब मेवा घर संभालती थी और आग्रह बार बार उसे नौकरी करने को कहता था !
आग्रह को ये बात समझ आ चुकी थी कि मेवा अपने मायके तो गयी नहीं होगी, लेकिन वो है कहाँ ? सबसे बड़ा सवाल सामने था लेकिन हिम्मत नहीं थी कि मेवा को फ़ोन करके पूँछ सके कि तुम हो कहाँ ? भागता हुआ कमरे में पहुंचा और वो चीज ढूंढने की कोशिश करने लगा जिससे मेवा का पता लग सके, बाहर खोज बीन करने के बाद उसने अलमारी का लॉकर खोला जो खाली था ! फिर अपना पर्स देखा उसमे सिर्फ १०० रूपये थे और साथ में एक पर्ची जिसपर लिखा था कि बैंक से पैसे निकाल लेना आप !
उस समय आग्रह ने एक बार भी नहीं सोचा कि मेवा ने ये क्यों किया होगा ? उसके दिमाग में आया कि मेवा ने उसे धोखा दिया है, जब भी वो दोपहर में लंच के समय मेवा को फोन करता था तब उसका फ़ोन व्यस्त आता था ! वह ऑफिस जाने के बाद कभी फोन नहीं करती थी, हो ना हो उसे कोई और पसंद आ गया हो, वो मुझे धोखा दे रही हो शायद और मैं समझ नहीं पा रहा था ! हज़ारों नकारात्मक बातें आग्रह के दिमाग में आ चुकी थीं जिन्होंने मेवा के समर्पण बेबुनियाद और झूठा साबित कर दिया था !
उधर मेवा घर से दूर नहीं बल्कि घर के बगल में रहने वाली पड़ोसन जिन्हें मेवा मौसी कहती थी , उन मौसी के यहाँ रात रुक गयी थी, ताकि आग्रह को जब अपनी गलती का एहसास हो तब उसे मेवा को ढूढ़ना ना पड़े ! मेवा इससे पहले कभी इस तरह घर छोड़कर नहीं निकली थी ना ही कभी आग्रह ने कुछ ऐसा कहा था, लेकिन इस बार आग्रह से सीधा हाथ पकड़कर उसे घर के बाहर का रास्ता दिखाया और बोल दिया जब मैं घर लौटू तो मुझे दिखाई मत देना!
मेवा ने मौसी को सबकुछ बताया तब मौसी ने उसे दो- तीन दिन उन्हीं के घर रुकने की सलाह दी ! रात को मेवा भी कहाँ आराम से सो पा रही थी , करवट ही बदलती रही वो पूरे समय ! कभी आंसू पौंछती अपने तो कभी खुद को समझाने की भरपूर कोशिश, लेकिन दोनों में नाकाम साबित हुई वो… बार बार आग्रह का ख्याल आता रहा उसे कि ना जाने क्या सोचा होगा उन्होंने, जबकि मैंने कुछ नहीं किया, मैं बस समय नहीं दे पा रही थी कुछ दिनों से भारी व्यस्तता की वजह से ! आग्रह ने मुझे समझने की कोशिश भी नहीं की और अलग होने की बात कह दी!
जब नींद ना आने से उसे घबराहट होने लगी तब उसने आग्रह को बिना सोचे समझे आधी रात को फोन किया ! कई बार फ़ोन की घंटी बज़ी लेकिन फोन उठाने वाला कोई नहीं था, क्युकिं फ़ोन आग्रह छत पर ही छोड़कर आ गया था ! तभी जोर जोर से दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आयी तब मेवा को मौसी ने बताया कि आग्रह है बाहर , तुम सामने मत आना मैं बात करती हूँ उससे यदि उसे अपनी गलती का एहसास होगा तो तुम आराम से ख़ुशी ख़ुशी घर चले जाना वर्ना एक दो दिन यही रुकना ! जब मौसी आग्रह के सामने पहुंची तो आग्रह किस्मत का सताया हुआ बेबस इंसान समझ आ रहा था , वह कुछ बोल पातीं इससे पहले ही आग्रह ने कहा – मेवा सबकुछ लेकर चली गयी , ना लॉकर में पैसे हैं ना ही मेरे पर्स में ! कहां गयी नहीं पता लेकिन पैसे लेकर गयी है मेरी मेहनत के उसे मैं कभी माफ़ नहीं करूँगा !
इतने में मेवा सामने आ चुकी थी, आग्रह चुप होकर मूरत बन गया ! मेवा वापिस कमरे में लौटी और तीन पर्ची लाकर आग्रह के हाथ में दीं, एक बैंक के लोन का कुछ हिस्सा चुका देने की थी जिसके चालीस हज़ार , लॉकर से निकालकर मेवा ने आज आखिरी तारीख की वजह से जमा कर दिए थे ! दूसरी पर्ची राशन वाले की थी, जिसका हिसाब हर महीने के आखिरी में होता था और तीसरी पर्ची उस मनी आर्डर की थी जिसमे आग्रह की मां को हर महीने पांच हज़ार भेजते थे ! आग्रह निशब्द था, जिन पचास हज़ार रुपयों के लिए मेवा को बेवफा समझा था , उनका हिसाब हाथ में था !
मेवा ने आंसू पोछें और छत की ओर चल दी, मौसी ने भी आग्रह को खरी खोटी सुनाई ! जब आग्रह को अपनी गलती का एहसास हुआ और वो छत पर पहुंचा तब तक मेवा नीचे ज़मीन पर लाश बन चुकी थी, मेवा ने छत से कूंद कर जान दे दी थी ! मेवा ……. आ आ आ …
एक चीख ने पूरी बिल्डिंग को जगा दिया था , जब तक लोग जानते समझते तब तक उन्हें छत से कूंदकर जान देने वाले लोगों की दो लाशें मिली !
#जयति जैन (नूतन)
परिचय: जयति जैन (नूतन) की जन्मतिथि-१ जनवरी १९९२ तथा जन्म स्थान-रानीपुर(झांसी-उ.प्र.) हैl आपकी शिक्षा-डी.फार्मा,बी.फार्मा और एम.फार्मा है,इसलिए फार्मासिस्ट का कार्यक्षेत्र हैl साथ ही लेखन में भी सक्रिय हैंl उत्तर प्रदेशके रानीपुर(झांसी) में ही आपका निवास हैl लेख,कविता,दोहे एवं कहानी लिखती हैं तो ब्लॉग पर भी बात रखती हैंl सामाज़िक मुद्दों पर दैनिक-साप्ताहिक अखबारों के साथ ही ई-वेबसाइट पर भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl सम्मान के रुप में आपको रचनाकार प्रोत्साहन योजना के अन्तर्गत `श्रेष्ठ नवोदित रचनाकार` से समानित किया गया हैl अपनी बेबाकी व स्वतंत्र लेखन(३०० से ज्यादा प्रकाशन)को ही आप उपलब्धि मानती हैंl लेखन का उद्देश्य-समाज में सकारात्मक बदलाव लाना हैl